पल्ली आ गई |
मशालों का प्रकाश था | सुरसुंदरी ने प्रकाश में लुटेरों के अड्डे की जगह को देख लिया | लुटेरे उसे एक मकान में ले गये | मकान क्या , मिट्टी का बनाया हुआ झोंपङा था |
मकान में घुसते ही उसने पल्लीपति को देखा…..पलभर तो सुरसुंदरी भय से कांप उठी | उसे लगा वह किसी क्रूर बघेरे की गुफा में आ फंसी हो | पल्लीपति का शरीर एकदम स्थूल व भोंडा सा लग रहा था | उसके शरीर पर रींछ से बाल ऊगे हुए थे | उसकी आँखे बङी बङी और डरावनी थी | शरीर पर एक मात्र काला कपङा उसने लपेट रखा था , जो कि उसके शरीर के रंग में समा गया था | उसके समीप ही खून से सनी हुई दो तलवारें रखी हुई थी | एक मैली सी गोदङी पर वो करवट के बल लेटा हुआ था | लुटेरों के साथ रूपसी औरत को देखकर वह तुरन्त उठ बैठा :
‘अरे वाह ! दोस्तो…..यह क्या चीज ले आये हो आज ?’
‘मालिक , जंगल में से मिली है…..परी है परी ! देवलोक की अप्सरा से भी ज्यादा सुन्दर लाये हैं आपके लिये सरदार !’
पल्लीपति तो आँखे फाङकर जैसे सुरसुंदरी को कच्ची ही निगल जाने वाला हो उस तरह घूर रहा था | सुरसुंदरी नजर नीची किये हुए खङी थी |
‘सचमुच परी है , यह तो | मैं इसे मेरी पत्नी बनाऊंगा |
जाओ , आज तुम्हें चौरी में जो भी माल मिले…वह सब तुम्हारा | हम तुम्हारे पर खुश हैं |
लुटेरे खुश खुश होकर नाचते हुए चले गये |
पल्लीपति खङा हुआ | सुरसुंदरी के करीब आया | देख सुन्दरी….मैं इस पल्ली का मालिक हूँ….तुझे मैं अपनी औरत बनाऊँगा । तू मेरी रानी बनेगी । पुरे इलाके की महारानी ! वाह ! फिर क्या मजा आयेगा ?
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