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सुरसुन्दरी सरोवर में डूब गई – भाग 5

लीलावती ने नौकरो को भेजा तलाश करने के लिये और खुद राजसभा में पहुँची | राजा से शिकायत की | राजा ने तुरंत चारो दिशा में आदमी भेज कर तलाश करवायी | पर शाम ढलते ढलते तो सभी खाली हाथ वापस लोटे | लीलावती के होश उड गये, वह फफक फफक कर रो दी |
सरिता ने लीलावती से आहिस्ता से कहा :
‘देवी, आप रोओं मत ! सवा लाख रूपये तो तुम चुटकी बजाते कमा लोगी | वह सुंदरी गई तो मेरी बला टली, वो यदि रहती तो अपन सब की जान खतरे में थी |’
‘क्या बात कर रही है, सरिता ! साफ साफ कह जो कहना हो |’
‘मै सही बात कर रही हूँ, मालकिन….मै सच बोल रही हूँ |’
‘पर कुछ बतायेगी भी या बकती ही जायेगी ?’
‘आप नहीं मानोगी, पर मेने एक रोज उस सुंदरी को किसी खोफनाक यक्षराज से छुपकर बाते करते देखा था |
मै दरवाजे की ओट में छुपकर खडी थी |’
‘हें क्या कहा ? यक्षराज ?
हाँ…यक्ष उसे ढाढस दे रहा था : ‘तू चिंता मत कर बेटी, यह वेश्या यदि तेरे शील का खंडन करवायेगी तो मैं इसे जीती ही चबा डालुगा |’
‘क्या कहा ? तूने ऐसा सुना था ?’ लीलावती डर के मारे कांपने लगी | उसने सरिता के दोनों हाथ पकड़ लिये |
‘हा, मैंने मेरे कानो से सुना था |’
‘तो फिर मुझे आज तक बताया क्यों नहीं ?’
‘शायद तुम्हे भरोसा नहीं होगा….’
‘तो क्या वह यक्षराज ही उसे उठा ले गया होगा ?’
‘मुझे तो ऐसा ही लगता है | जो हो सो अच्छा !
अब उसे खोजने की कोशिश भी न कीजिये….क्या पता यदि यक्षराज नाराज हो जायेगा तो अपन सबको….’
नहीं….नहीं….सरिता, मुझे नहीं चाहिए वो कलमुं ही सुन्दरी, कमबख्त ने सवा लाख रुपये गंवाये मेरे !’
‘पर देवी ! अपन जिन्दा रहे वह ही गनीमत है, पैसा तो इधर गया….उधर से आ जायेगा |’
‘हा…अपन जिन्दा रहे यही बहुत | अब ऐसी किसी भी सुंदरी को नहीं खरीदुगी |’
सुरसुन्दरी सरोवर में कुद गिरी |

आगे अगली पोस्ट मे…

सुरसुन्दरी सरोवर में डूब गई – भाग 4
June 29, 2017
सुरसुन्दरी सरोवर में डूब गई – भाग 6
June 29, 2017

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