पर यह क्यों हुआ । इसने मुझे क्यों ख़रीदा? मै खूबसूरत हुँ इसलिए ? मेरा सौन्दर्य ही मेरा दुश्मन बना हुआ है। वह धन्नजय एवं फानहान भी मेरे पर इसीलिए मोहित हुये थे न।मेरे रूप के पाप से। मेरे रूप को मै कितना चाहती थी। मेरे रूप को देखकर में अपना पुण्योदय मानती थी।अमर जब मेरे रूप की प्रशंसा करता तब में फूली नहीं समाती वह रूप ही आज मेरी जान का दुश्मन बेन बेठा है। मेरा सर्वनाश करने का निमित्त हुआ जा रहा है। क्या करू ? कहाँ जाऊ? इस रूप को जल दू?आग लगा दू? मेरे चेहरे की खूबसूरती को ?
हाँ जला ही दु इस रूप को। मै बदसूरत हो जाऊगी… मेरा चेहरा भुलस जायेगा…. मेरे बाल जल जायेगे.. मेरी सूरत गंदी हो जायेगी फिर कोई मेरी और निगाह नहीं उठायेगा । कोई मुझे अपना शिकार नही बनायेगा और तो और यह वेश्या भी मुझे बहार निकाल देगी अपने घर से।
परन्तु यदि यकायक अमर से मिलाना हो गया तो ? अमर…मेरे अमर! तूने यह क्या किया ? अमर..औह! तेरे ही भरोसे पर तेरी गोद में सोयी अपनी प्रियमता को इस तरह छोड़ दिया ? क्या तू मूझे और कोई सजा नहीं दे सकता था ? हाय यदि तूने मेरा गाला घोट दिया होता मुझे मार ढाला होता तो मै तुझे नहीं रोकती पर मेरा शील तो अखण्ड रहता ना ? मेरी अस्मत को तो खतरा नहीं रहता अमर। तू सोच भी नहीं सकता मेरी क्या हालत हो रही है ओह! अमर तु मुझे कभी न कभी… कही न कहि मिलेगा… क्या इसी आशा के कच्चे धागे के सहारे जिन्दगी गुजारूं ? पर शील को गवाकर जिना मुझे गवारा नही होगा । यह मुमकिन नहीं मेरे लीये ।और.. अब जिन्दा रह कर शील की सुरक्षा करना बड़ा कठिन ही नही असंभव सा नज़र आ रहा है। कहाँ लाकर पटक दिया है मेरे पाप कर्मो ने मुझे, इस वेश्यालय में! हाय! मेरे पाप कर्म भी कितने कठोर है।
आगे अगली पोस्ट मे…