चौराहे के बीचों बीच एक लम्बा ऊँचा चबुतरा था।
फानहान ने सुरसुन्दरी को उस चबूतरे पर खड़ी रखा और खुद उसके पास खड़ा रहकर चिल्लाने लगा ।सुनो भाई ।सवा लाख रूपये देकर जिस किसी को चाहिये इस रूपसुन्दरी को यहाँ से ले जाये। भारत की इतनी खूबसूरत परी तो सवा लाख में भी फिर दुबारा नहीं मिलेगी ।ले लों चाहिये जिसे । ऐसा मॉल बारबार नहीं आता ।
तमाशे को दावत क्या? रस्ते से गुजरते हुए लोग एकत्र होने लगे। इर्द गिर्द के मकान दुकान के लोग उतर कर इस टोले को बढाने लगे। वेसे तो इस नगर में इस ढंग से आदमी औरत का क्रय विक्रय बिच बिच बाजार होता था… इसलिये लोगो को कुछ ताज्जुबि नहीं थी ।
सवा लाख रुपये तो बहुत ज्यादा है… जरा कीमत कम करो न? टोले में से एक मनचले जदानं ने कहा:
एक पैसा भी कम नहीं होगा… यह तो भारत का हूर है… यह तो रास्ते का सोदा है, वरना इस परी के साथ कुछ समय गुजारने के भी हजारो रुपये लगते है ।तुम्हे चाहिए तो लो… कोई जबरदस्ती नहीं। हिम्मत हो और रूप की तलाश हो तो ले जाओ इस अप्सरा को सवा लाख रुपये रोकड़े देकर।
भीड़ बढती जा रही थी। सभी टुकुर टुकुर सुरसुन्दरी को देख रहे थे। सुरसुन्दरी की आँखे बंद थी। पर उसके चहरे व्यथा की घनघोर घटाए घिर आयीं थी। वह गुमसुम हो गयी थी। अमरकुमार को धोखे का शिकार होने के बाद यह दुसरी बार वो बुरी तरह धोखे को शिकार हो चुकी थी।
इस नगर में किसी के भी स्नेह या सहानुभूति जैसी बात थी ही नही। ऐसे दृश्य तो उन्हे रोज- बरोज देखने को मिलते थे। देश परदेश के व्यापारी यहाँ आकर आदमियो का सौदा करते -करवाते थे। सोहनकुल मे एसा घिनोना हिन् कक्षा का धंधा भी चलता था।
इतने भीड़ में कुछ बावेला सा मचा ।एक सुन्दर पर प्रौढ़ व्यक्तित्व वाली महिला भीड़ को चिर कर आगे आ रही थी।लोग उसे हस हस क़र रास्ता दे रहे थे ।वह करीब आई।उसने गोर से सुरसुन्दरी के देह को देखा।स्त्री को जाचने परखने में उसकी आँखे चतुर थी।उसका नाम था लीलावती । सोहानकुल की वह सुप्रसिद्व वैश्या थी ।वह एक बहुत बड़ा वेश्यालय चला रही थी। उसके पास लाखो रुपये थे।उसने फ़ानहान से कहा: मै दूँगी सवा लाख रुपये। व्यापारी ले चल इस सुन्दरी को मेरी हवेली पर। लोगो ने हर्ष नाद किया।
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