Archivers

समुन्दर की गोद में – भाग 6

‘इतनी जल्दबाजी मत करो । अपन साझ की बेला में जहाज के डेक पर चले गे… वह बैठेंगे…. ढलते सूरज के साये में आए उछलते सागर को छूते हुए निर्णय करेंगे…. पर हा, वहा पर उस समय दो के अलावा और कोई नही चाहिए ।’
‘वाह…वाह….वाह ! समय और जगह कितनी बढ़िया पसंद की ? ओर तो ओर ,तू तो जैसे कविता करने लग गयी । मुझे था ही..मेरा प्यार तेरे पत्थर दिल को मोम कर ही देगा । हा , मै सूचना दे दूँगा की अपन दो के अलावा वहाँ पर और कोई नहीं रहेगा । ‘
‘तो मै कपड़े वगैरह बदल लू….?’
‘मै भी अच्छे कपड़े पहन लू न?’
‘आपको भोजन करना हो तो कर लीजिए ।’
‘नही…अब तो मै अपना मन चाहा भोजन ही करुगा ।’
उसने ललचायी निगाहों से सुरसुन्दरी की देह को देखा ।
सुरसुन्दरी ने धनंजय के जाते ही अपने खंड के द्वार बंद किये ।सुंदर कपड़े पहने । ध्यान में लीन होने के लिये वो बैठ गयी। श्री नमस्कार महामंत्र के ध्यान में लीन हो गयी । उसके अंग – अंग में सिहरन फैलने लगी । जैसे कोई अनजान शक्ति उसके भीतर जमा हुई जा रही थी । उसने आँखे खोली । खड़ी हुई और दरवाजा खोल कर बाहर निकली ।
धनंजय भी इधर स्वर्ग के सुख की आशा में झूलता – झूलता डेक पर आ पहुँचा । दोनो जहाज के किनारे पर जाकर एक पाट पर बैठ गये । नाविक व अन्य नोकर लोग वहां से खिसक गये ।

आगे अगली पोस्ट मे…

समुन्दर की गोद में – भाग 5
June 28, 2017
समुन्दर की गोद में – भाग 7
June 28, 2017

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers