‘ पंचपरमेंषठी भगवंतो की कृपा से व् आपके अनुग्रह से मै कुशल हूँ |’ सुन्दरी ने यक्ष से कहा
‘चलो , अब वृक्षों का परिचय करवाऊ |’
‘एक व्रक्ष के निचे आकर दोनो खड़े रहे । यक्ष ने कहा :
‘इस व्रक्ष की डाली को स्पर्श करगी तो ये डालियों नृत्य करने लगेगी !’ सुर सुंदरी ने स्पर्श किया और डलियां का नृत्य चालू हो गया !
‘अब अपन दूसरे उपवन में चले ।’यक्ष राज सुर सुंदरी को लेकर दूसरे उपवन में आये ।
‘देख, यह झरना जो बह रहा है…इसके पानी मे नजर डाल ….तू जो दृश्य देखना चाहेगी….वो दृश्य तुझे दिखेगा ।तुझे इतना ही बोल ने का की मुझे यह दृश्य देखना है ।’ सुर सुंदरी पानी मे निगाह डालती हुई बोली : ‘मेरे स्वामिन भी जहा हो उसका दृश्य देखना है ।’ तुरन्त समुन्द्र के पानी पर तैरते जहाज दिखायी दिये । जहाज के एक कमरे में बैठा अमरकुमार भी दिखायी दिया । सुरसुंदरी चीख उठी….’अमर !’
यक्ष ने कहाँ: ‘बेटी , यह तो मात्र दृश्य !तेरी पुकार वह कहा से सुनेगा ?
देख….वो उदास – उदास लग रहा है न ? उसे भी शायद पश्चाताप हुआ होगा तेरा त्याग करके !अब आगे चले….
तीसरे उपवन में तुझे एक अदभूत चीज देख ने को मिलेगी !’
दोनो तीसरे उपवन में आये । यहा पर एक सुंदर सरोवर था । यक्ष ने कहा :’बेटी, इस सरोवर में से तू जो मांगेगी वह जानवर प्रकट होगा !’ बस,इस उपवन की एक चुटकी रेत लेकर सरोवर में डालने की ।’
सुर सुंदरी ने ताज़्जुबी से चुटकी रेत लेकर सरोवर में डाली और बोली :’हिरन का एक जोड़ा प्रकट हो !’ और सरोवर में से हिरन-हिरनी का एक लुभावना जोड़ा बाहर आया ।
सुर सुंदरी ने उस जोड़े को अपने उत्संग मे ले लिया !यक्ष हँस पड़ा ।
‘बेटी, अभी इसे छोड़ दें ! फिर तेरी इच्छा हो तब यहा चली आना और खेलना….! अभी तो चौथा उपवन देखना बाकी है !’
दोनो चौथे उपवन में आये । यहा पर रंग बिरंगे लाता मंडप छा ये हुए थे ।सेकड़ो सुगन्दीत फूलो की बैले इधर उधर भिखरी पडी थी । यक्ष ने कहा :
‘सुंदरी, यहां तुझे जिस मौसम के फूल चाहिए ….वे तुझे मिल जायेगे । तुझे मन पसन्द ऋतु के फूलो से उपवन महक उठा !
‘यह मेरे चार उपवन है । अभी तक तो उपवनों में मेरे अलावा और कोई नही आसकता था ,पर अब तेरे लिए ये उपवन खुले है । जब भी मन हो यहा घूमने चले आना । तेरा समय भी आनंद से व्यतीत होगा । में रोजाना सुबह और शाम तेरे पास आऊगा । यहा तु ओर किसी भी तरह का डर मत रखना । तू यहां निर्भय व निश्चित रहना ।’
यक्ष आकाश में अदृश्य हो गया । सुर सुंदरी स्तब्ध होकर ठगी ठगी सी खड़ी रह गयी !
ये सारा प्रभाव श्री नवकार का है….
वन में उपवन मिल गया !
यक्ष प्रेम भरे पिता बन गये ।
शमशान भूमि जैसे स्वर्ग बन गयी ।
ओह ! इस महा मंत्र की महिमा आपार है ! गुरु माता ने मेरे पर कितना उपकार किया है यह मंत्र देकर ! अगर आज मेरे पास यह मंत्र नही होता तो ?उसने मन ही मन गुरुमाता को नमस्कार किया ।।