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आखिर , जो होना था – भाग 5

‘अमर । तुम कहां हो ?
स्वामिन , मेरे पास आओ न ? मुझे डर लग रहा है ।’
कोई जवाब नहीं मिलता है ।
कोई आहट नहीं सुनायी देती है ।
सुरसुन्दरी बावरी होकर वुक्षों की घटा में दौड़ने लगी। इधर उधर आँखे फेरने लगी : घटा में से बाहर आकर चौतरफ देखने लगी । कहीं अमरकुमार नहीं दिखा । सुरसुन्दरी उसी वुक्ष के नीचे आकर खड़ी रह गयी उसकी आँखों में से आंसू बहने लगे । उसकी छाती घड़कने लगी ….
‘मेरे स्वामिन … अमर । तुम कहां चले गये हो ? मुझे यहां सोयी छोड़कर तुम कहां चले गये? अब मुझसे नहीं सहा जाता …. मेरे देव । तुम चले आओ न ? मुझे घबराओ मत …. आओ न । मेरे अमर …. जहां हो वहां से आ आओ ।’
उसके पैर काँपने लगे । वह जमीन पर बैठ गयी । ‘ऐसे डरावने द्विप पर पत्नी को अकेला नहीं छोड़ा जाता । ऐसी भी मजाक क्या ? तुम मेरी जिंदगी हो , मेरे प्राणों और मुझे अपनी बाहों में ले लो । वर्ना मैं अब नहीं जी पाऊंगी ….? क्या मेरे आंसू तुम्हें नहीं दिखते ? क्या मेरा रोना तुम्हें सुनाई नहीं देता ? क्या मेरी आहों से भी तुम्हारा हदय नहीं पसीजता ? आ जाओ नाथ ? अमर …अमर…मुझे अपने में समा लो … आओ न ?’
सुरसुन्दरी फफक फफक कर रोने लगी । आंसू से भीगे चेहरे को साफ करने के लिये उसने साड़ी का आंचल हाथ में लिया… और वह चोंकी । ‘यह क्या?’ साड़ी का छोर भारी था । गांठ लगायी हुई थी । तुरन्त उसने गांठ खोली , सात कोड़ियां बिखर गयी जमीन पर । उसकी आंखों में भयभरा विस्मय तैर आया … इतने में तो उसकी निगाह साड़ी के छोर पर लिखे हुए अक्षरों पर गिरी ‘सात कोड़ी में राज्य लेना ।’
वह एकदम खड़ी हुई और किनारे की ओर दौड़ने लगी । दूर ही से उसने देखा तो किनारे पर न तो कोई आदमी था …. नहीं कोई नाव थी । किनारा बिल्कुल सुना था । फिर भी वह दौड़ती रही … किनारे पर आकर खड़ी रही …।

आगे अगली पोस्ट मे…

आखिर , जो होना था – भाग 4
May 29, 2017
आखिर , जो होना था – भाग 6
May 29, 2017

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