वैर की आग धधक उठी होगी,बदला लेने के लिए तड़प रहा होगा !’
यह बात तुम्हारी जंचती है | चुकी धर्मशास्त्रो में ऐसी बाते पड़ने को मिलती है !मेने पड़ा भी है !’
‘और फिर इस व्दीप पर इसका अधिकार होगा |’ उसको इजाजत के बगेर जो कोई भी इस व्दीप पर आने की कोशिश करता होगा उसे वह मर देता होगा |
अमरकुमार ने यक्ष के द्वारा को जाने वाली मानव हत्या का दूसरा संभावित कारण बतलाया |
‘पर उसकी इजाजत लेने जाय कौन? किस तरह जाय ? कहा जाय ! क्या वह जिन्दा ~जगता प्रत्यश रहता होगा ? देव तो मानवी की आँखो को ओझल रहते है ना ?’
‘नहीं….देखे भी जा सकते है …और नहीं भी दिखे !फिर भी उसकी अनुज्ञा ली जा सकती है | अनजान जगह पर रहना हो तो ‘इस भूमि पर जिस देव का अधिकार हो वो देव मुझे अनुज्ञा दे ! मुझे इस जगह पर रहना है |’ इतना बोला की अनुज्ञा मिल गयी, वैसा मान लेने का |’
‘तब तो फिर अपन भी इस तरह अनुज्ञा लेकर ही उस व्दीप पर उतरेगे | फिर तो यक्ष अपन को नहीं मरेगा न?’
‘क्या पता ….? मर भी डाले ….यदि कुर हो तो |’
‘ऐसा हो तो अपन रात नहीं रुकेगे वहा पर |’
‘रात वहा रुकने की तो जरुरत भी नहीं है !अपन को वहा उस व्दीप पर घुमने फिरने के लिए एक प्रहर जितना समय भी मिल जायेगा! व्दीप वैसे भी काफी रमणीय है | अपन दोनों चलेगे घुमने ! लोटकर भोजन कर लेगे और फिर जहाजो को आगे बड़ा देगे !’
‘ठीक है , वहा पर भोजन आदमी लोग बनाये ….पर यहाँ तो मेरे हाथ का खाना ही खिलाउगी ! बराबर न ?’ हंसी में लिपटी सुर सुंदरी खड़ी हुई और रसोई घर को ओर चल दी तैयारी करने के लिए !
अमरकुमार मन्त्रणा~खंड में गया | मुनीमों को वही पर बुलवा लिया और उनके साथ व्यापार वगेरह के बारे में विचार ~विमर्श चालू किया |
अनुभवी मुनीमों ने सिंहल व्दीप के व्यापारियों की रीती ~रसम बतायी….भय स्थान भी जतलाये | उस व्दीप की राजनीती समझायी | व्यापारिक निति ~रीती का ख्याल दिया | अमरकुमार एकाग्र मन से सुनाता रहा सारी बाते | पिताजी के समय के मुनीमों पर अमर को भरोसा था | श्रध्दा थी |
जहाज आगे बढ रहे थे उस यक्ष ~व्दीप की ओर , जहा सुंदरी के जीवन में एक न सोचा हादसा होना था | सोची बाते बनने/बिगड़ने से ज्यादा असर नहीं होता ! जब अनचाहा बनता/बिगड़ता है तो पूरी जिंदगी ठहराव सा आ जाता है !