सुरसुन्दरी भी अमरकुमार के साथ भरोखे में पहुँची। दोनों ने आकाश के सामने देखा। आप कुछ परेशान से नजर आ रहे हो। क्या चिन्ता हे ? आपको अभी तक नींद क्यों नहीं आयी? रात का दूसरा प्रहर पूरा होने को है। परेशान नहीं सुरसुन्दरी पर मन में विचारो की आंधी उमड़ रही है। किस के विचार आ रहे हे ? क्या मुझे कहने जेसे नहीं है वे विचार?
तेरे से छुपाने जिसा मेरे मन में हे भी क्या?
तुझे कहे बगेर तो चलने का भी नहीं तो फिर इतनी देरी क्यों शायद तुझे दुःख होगा?
यदि आपके दिल में दुःख होगा मुझे भी दुःख होने का हो । आपके दिल में यदि दुःख नहीं होगा तो मुझे भी किसी तरह का दुःख नहीं होगा। दिल में दुःख नहीं है सुर पर चिन्ता तो जरूर है ।हाँ यदि तु मान जाये तो मेरी चिंन्ता दूर हो सकती है। तू ही उसे दूर कर सकती है।
आपकी कोन सी बात मेने नहीं मानी?
तो कहु ?
कहिये ना
सुर पिछले कई दिनों से विदेश यात्रा करने के विचार आ आ कर मेरे दिल दिमाग को घेर लेते है ।
‘पर क्यों? विदेश यात्रा की आवश्यकता क्या है ? ‘अपनी कमाई से सम्पति प्राप्त करना है ..अपने बुद्धि कौशल्य से दौलत पाना है।’सम्पति की यहां क्या कमी है ? इतनी ढेर सारी संपत्ति तो अपने पास है, फिर और ज्यादा …!’ इसके वारिस तो आप ही है ना?”
मै आप कमाई पर जीना पसंद नही करता..। मेरा पराक्रम, मेरी होशियारी …मेरी कुशलता तो मेरे पुरुषार्थ से सम्पति पैदा करने में है!
‘तो क्या अपने ही देश में रहकर आप व्यापार नही कर सकते?’
कर तो सकता हूँ… पर विदेश.. देश-परदेश घूमने को इच्छा भी तो प्रबल है ना?और फिर सिंहलद्वीप मे तो व्यापार भी कॉफी अच्छा हो सकता है ! ढेर सारी सम्पति यहां पर थोड़ी सी मेहनत से प्राप्त की जा सकती हैं।’
आपने पिताजी से बात की ? ‘
नही,किसी को कुछ नही कहा है….इसलिये तो और हराम हो गई…. आज पहले पहल तुम्हे ही बात की है।
‘अच्छा अब तो नींद आ जायेगी न? चले …सो जाये
‘नही …में विदेश यात्रा में जाऊ इसमें तेरी सहमति है न ? तू तो प्रसन्न होकर इजाजत देगी न ?
‘यानी क्या आप मुझे यही छोड़कर जाने का इरादा रख़ते हो?
आगे अगली पोस्ट मे…