धनावह सेठ, मै अपनी बेटी सुरसुन्दरी के लिए तुम्हारे सुपुत्र अमरकुमार की मंगनी करता हुँ… अमरकुमार को मेने कल राजसभा में देखा है…परखा है
सुरसुन्दरी के लिए वह सुयोग्य वर है …
कहो तुम्हे मेरा प्रस्ताव केसा लगा?
मै तुम्हे इसलिये यहाँ बुलवाया है.. अभी।
‘ हो मेरे मालिक! आपके मुँह में घी- शक्कर! आपके इस प्रस्ताव पर मुझे जरा भी सोचना नहीं है… आपका प्रस्ताव में सहर्ष स्वीकार कर लेता हुँ… सुरसुन्दरी मेरी पुत्रवधु बनकर मेरी हवेली में आयेगी, मेरी हवेली को उजागर करेगी। कल मेने भी राजसभा में सुरसुन्दरी को देखा है… रूप-गुण- कला और विनय विवेक उसका श्रृंगार है ।
सेठ तुमने मेरी बात स्वीकार की …मै अत्यंत प्रसन्न हुआ हुँ। तुम यहाँ बेठो, में सुरसुन्दरी की माँ को यह शुभ समाचार दे आउ। वो यह समाचार सुनकर हर्षविभोर हो उठेगी।
महाराजा त्वरा में रतिसुन्दरी के खंड में पहुँचे और प्रसन्न मन से.. प्रसन्न मुख से बोले:
देवी, धनावह सेठ ने मेरी बात का सहर्ष स्वीकार कर लिया है। मेने वचन दे दिया है ।अमरकुमार अब अपना दामाद बनता है ।
बहुत उत्तम कार्य हो गया …स्वामिन्! सभी चिन्ताए दुर हो गई… मुझे तो जेसे स्वर्ग का सुख मिला।
तो मै जा रहा हुँ ..सेठ बेठे है .. यह तो मै तुम्हे शुभ समाचार सुनाने के इरादे से दौड़ आया था ।
पधारिये , आप… मै भी सुरसुन्दरी को समाचार सुना दू।
महाराजा सेठ के पास आये।
सेठ! महारानी यह समाचार सुनकर अत्यंत आनन्दित हो उठी है ।
महाराजा, तो फिर अब शादी में विलम्ब नहीं करना चाहिए।
आगे जानिये अगली पोस्ट मे…