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मन की मुराद – भाग 4

श्रेष्ठि धनावह और सेठानी धनवती तो सपना भी नहीं देख सकते थे की सुरसुन्दरी उनके घर में पुत्रवधु बन कर आये।
जब पुण्यकर्म का उदय होता है तब न सोचा हुआ सुख मनुष्य को आ मिलता है, जब पापकर्म उदय में आते है तब अकल्पित दुःख टूट गिरता है मनुष्य के सर पर।
दूसरे दिन सुबह जब श्रेष्ठि धनावह प्रभतिक कार्यो से निपट कर उपाश्रय मे धर्मप्रवचन सुनने के लिये जाने की त तैयारी कर ही रहे थे की हवेली के प्रागण में रथ आकर खड़ा रहा। रथ में से महामंत्री उतरे और हवेली की सोपान पंक्तिया चढ़ने लगे।
श्रेष्ठि महामंत्री का स्वागत करने के लीए सामने दौड़े। महामंत्री का हाथ पकड़ कर मंत्रणागृह में ले आये। महामंत्री का उचित स्वागत करके पूछा-
‘ आज क्या बात है? इस झोपडी को पावन किया? मेरे योग्य सेवाकार्य हो तो फरमाइये .. श्रेष्ठि धनावह ने अपनी सहज मीठी जबान में बात की।
महामंत्री ने कहा- धनावह सेठ! मै तुम्हें लेने आया हुँ… महाराजा ने भेजा है मुझे। तुम्हे लेवा लाने के लिये… आप कृपा करके रथ में बेठे।
धनावह सेठ सोच में डूबे। महामंत्री ने कहा – चिंता मत करो… सेठ यहाँ आने को निकला तब शगुन सुन्दर हुए है। सेठ का हाथ पकड़कर महामंत्री मंत्रणागृह के बहार आये। सेठ ने अमरकुमार से कहा- वत्स, मै राज- महल में जा रहा हुँ… महाराज ने मुझे याद फ़रमाया है।
महामंत्री के साथ सेठ रथ में बेठ गये। रथ राजमहल की और दौड़ने लगा ।दौड़ते हुए रथ को अमर कुमार देखता ही रहा।
उसे कहा पता था की उस रथ के दौड़ने के साथ साथ उसकी किस्मत भी दौड़ रही है। उसकी मनोकमना को साकार करने के लिए उसका नसीब सेठ को राजमहल की और लिए जा रहा है।
श्रेष्ठि धनवाह को लेकर महामंत्री राजमहल में पहुँचे।
रथ में से उतर कर दोनों महानुभाव महाराज अरिदमन के मंत्रणाग्रह में प्रविष्ठ हुए।
पधारिये, श्रेष्ठिवर्य ! महाराजा ने खुद खड़े होकर धनावह सेठ का स्वागत किया और आग्रह करके अपने पास ही बिठाया। महामन्त्री महाराज की अनुमति लेकर वहा से चल दिये।
आज्ञा करे राजन, सेवक को क्यों याद किया।
मुझे एक बात करनी हे तुमसे… यदि तुम्हें अच्छी लगे तो मेरी बात स्वीकार करना।
महाराजा, आप तो हमारे मालिक है … सर्वस्व है… प्रजावत्सल है… आप जो भी कहेगे वह मेरे हित के लीए ही होगा… इसकी मुझे श्रद्धा है… विशवास है। आप आज्ञा प्रदान करे।
मै आज्ञा नहीं बल्कि एक याचना कर रहा हुँ।
आप मुझे शर्मिंन्दा मत करे। इस तुच्छ सेवक के पास आपको याचना करनी होती हे क्या ?।आपको आज्ञा करनी है।

आगे अगली पोस्ट मे…

मन की मुराद – भाग 3
May 16, 2017
मन की मुराद – भाग 5
May 16, 2017

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