‘ जब अमर आचार्यश्री के अध्यन के पास करने जाता हैं, में भी उसी समय जाउगी आचार्यश्री को वन्दन करने के लिए, आचार्य श्री के सानिध्य मेही तत्वचर्चा छेड़ूगी ।’
उसका मन- मयूर नाच उठा ।
महल के आगन में एक मोर अपने पैर फेलाकर नाचने लगा।सुन्दरी मन ही मन बोल उठी :’अरे, मोर ,क्या तु न मेरे मन की बात जान ली ?नाच …तू भी नाच!’
सुरसुन्दरी भोजनग्रह में पहुँची ,माता रतिसुन्दरी के पास ।माता के साथ बैठकर उसने खाना खाया ।भोजन से निपट कर माँ -बेटी दोनों शयनकक्ष में जाकर बैठे ।
‘बेटी ,अब तेरा अध्यन कितना बाकी हैं?’
‘ अरे माँ! यह अध्ययन तो कभी पूरा नहीं होगा …सारी जिन्दगी बीत जाय फिर भी इस अध्यन की पूर्ण विराम नहीं आता !यह तो अनंत हैं,असीम हैं।’
‘ तेरी बात सही हैं।पर बेटी,आ सर्वज्ञशासन के मुलभुत सिद्धान्तों का अध्ययन हो गया हैं न ?’
‘हा माँ मेने ,नवतत्व सिख लिए । सात नय का ज्ञान लिया ।चोदह गुणास्थानक जाने।ध्यान और योग की प्रक्रियाएँ समझी ।’
‘अब कोनसा विषय चल रहा हैं?’
‘अब तो मुझे ‘अनेकान्तवाद’ समझना हैं।’
‘बहुत अच्छा विषय हैं वह ।एक बार पूज्य आचार्य देव ने प्रवचन में अनेकान्तवाद की इतनी तो विशद विवेचना की में तो सुनकर मुग्ध हो उठी ।उस दिन में मेरे तेरे के पिताजी के साथ प्रवचन सुनने के लिये गयी थी।’माँ, मेरी भी यही इच्छा हैं की ‘अनेकान्तवाद’ का अध्यन में पूज्य आचार्य भगवंत के पास करू !वे इस विषय के निष्णात हैं।’
‘उन महापुरुष को यदि समय हो तो विनती करना उसने ! वे तो परमकृपालु हैं।यदि अन्य कोई प्रतिकूलता न हुई तो जरूर वे तुझे अनेकान्तवाद समझायेंगे !’
सुरसुन्दरी तो जेसे नाच उठी ।दो हाथ माँ के गले में डालकर माँ से लिपट गयी ।
‘मुझे तो जनम- जनम तक तू ही माँ के रूप में मिलना।’
‘ यानि ,मुझे जनम- जनम तक स्त्री का अवतार लेने का ,क्यो ?’प्यार से पुत्री को सहलाते हुए रतिसुन्दरी ने सुन्दरी के गालो पर थपकी दी ।
‘मेरे लिए तो तुझे स्त्री का अवतार लेना ही होगा माँ!’
‘अच्छा ,तुझे मेरी एक बात माननी होगी!’
‘अरे ,एक क्या ….एक सो बात मानुगी बोल, फिर ?’
‘तुझे चरित्र धर्म अंगीकार करने का!’
‘ यानि की साध्वी हो जाने का….यहीे न ?’
हाँ!’
‘ओह, तुझे तो साध्वी जीवन अच्छा तो लगता हीे हैं।’
‘हाँ, पर अभी साध्वी बनने का नहीं कहती हु !यह तो अगले जन्म में यदि में तेरी माँ होऊ और तु मेरी बेटी हो तो!’
आगे अगली पोस्ट में….