सेठ धनानद शाम को भोजन के समय घर पर आ गये पिता पुत्र ने साथ बैठकर भोजन किया धनवती पास में बैठकर दोनों को भोजन करवा रही थी और वही उसने बात छेड़ी अमर का विधा अध्धयन तो पूरा हो चूका है। अनेक कलाए उसने सिख लि है। अब ।अब उसे पेड़ी पर ले जाऊ ताकि व्यापर सिख समझने लगे नहीं पेड़ी पर उसकी क्या जरुरत अभी से ।अभी तो उसे एक कला और प्राप्त करनी है। कोन सी कला? सेठ को आष्चर्य हुआ। अमर भी सवाली नजर से माँ को ताकता रहा ओह सेठ ने अमर के सामने देखा अमर की नजर माँ पर थी ।वह समझ गया की यह पराक्रम सुन्दरी का ही है। हाँ हाँ धर्म की कला तो प्राप्त करनी ही चाहिए ।पर सीखेगा किसके पास
गुरुदेव के पास ।
क्यों अमर तेरी क्या इच्छा है? -सेठ ने अमर से पूछा आपकी और माँ की जो इच्छा वह मेरी इच्छा।
अमर के प्रत्युचर से धनवती को आनन्द से भर दिया भाग्ययोग से दूसरे ही दिन मगर में एक विषिष्ठ ज्ञानी आचार्यभगवंत पधारे धनवती ने वंदना करके कुशल पृच्छा की और प्रार्थना की ।गुरुदेव् आप यहाँ कुछ समय स्थिरता करने की कृपा करे ।आपके चरणों में बैठकर मेरा पुत्र अमर धर्मबोध प्राप्त करना चाहता हे गुरिदेव ने प्रार्थना स्वीकार कर ली अमरकुमार ने प्रतिदिन गुरुदेव के पास जाना चालु किया जब सुन्दरी को धनवती से यह समाचार मिले तब वह आनन्द से नाच उठी और एक दिन हवेली में जा पहुची क्यों श्रेष्ठिपुत्र अब दीक्षा का जुलुस कब निकल रहा हो? राज कुमारी अध्ययन पूरा होने पर तो उसका जुलुस निकल सकता अमरकुमार ने सलीके से कहा और सारी हवेली किलकारियों से गुंज उठी।
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