पार्श्वनाथ प्रभु समवसरण में विराजमान है। और भव्य जीवो के कल्याण के लिए देशना दे रहे है। परमात्मा की पुष्प पूजा के महत्त्व को बता रहे है। प्रभु की पुष्प पुजा से भी जबरदस्त कोटी का पुण्य का अर्जुन हो सकता हैं। बस प्रभु की पुजा करते समय आपके भावो में निर्मलता होनी चाहिए।
प्रभु की पुष्प पुजा से लगाकर 9 भव प्राप्त करने वाले नव निधिश्वर की रोचक कथा हैं।
हेल्लुर गांव का एक माली अनायास से एक गृह जिनालय में प्रवेश करता हैं। और त्रिभुवन शिरताज प्रभु के जिनबिम्ब को देखकर उसका दिल भर जाता हैं। फुलो को बेचते बेचते उसके पास जो नव फुल बचे है , वह नव फुल प्रभु के चरणों में समर्पित कर देता है। निर्मल भावो के साथ किया गया यह समर्पण प्रभु के भक्ति से उसे केसी अद्भुत समृद्धि परंपरा वह कुछ इस प्रकार है। अपने इस प्रथम भव में वह हेल्लुर गाँव में माली है। प्रभु की भक्ति से मिली यह 10भवो की परम्परा मुक्ति की मंजिल तय कराती है। पहले भव में की 9पुष्पो से प्रभु की पूजा जिससे दूसरे भव में एलपुर नगर में जन्म लिया और वहा पर नव लाख ड्रम के अधिपति बने।
एक सुन्दर बीज का वपन होता है। तो वह ढेर सारे मनोहर फलो को देता हैं। यहाँ से शुरू होता हैं। प्रभु भक्ति का जो बीज बोया था उससे आने वाले समृद्धि के फल तीसरे भव में उसी एलपुर नगर में 9 करोड़ दम के अधिपति बने थे।
चोथे भव स्वर्ण पथ नगर में 9 लाख स्वर्ण महोरे का अधिपति बने थे।
पांचवे भव स्वर्ण नगर में 9 करोड सोनायोहरे के स्वामी बने।
छठे भव में रत्नपुर नगर में 9 लाख रत्नों के मालिक बने।
सातवे भव में रत्नपुर नगर में 9 करोड़ रत्नों के अधिपति बने।
आठवें भव में वाटिका पुरी में 9 लाख गाँवो का रजा बना।
नवमे भव में वाटिका पुरी में नवनिधी का महाराजा बना।
दसवे भव में अनुत्तर विमान के देव बनेगे। और वहाँ से मनुष्य भव पाकर मुक्ति पुरी का स्वामी बनेगा।
लगातार 7 से 8 ही मनुष्य भव प्राप्त होते है। पर यह उसके जबरदस्त पुण्य के कारण सलंग 9 मनुष्य भव मिले। और फिर अनुत्तर विमान देव। यह है एक बार की पुष्प पुजा से मिली समृद्धि।
त्रिपष्ठीशलाका ग्रंथ 9 पर्व में बताई है।