“कृपया मुझे दिल की की दवा दे दीजिये”
यह अजीब और दुखद आग्रह उस आदमी ने किया जिसे उसके डॉक्टर ने बताया था की जिस बीमारी की शिकायत वह कर रहा था | उस की समस्या यह थी की वह अपने दुख से ऊपर नही उठ पा रहा था |
वह दुख के कारण “अपने व्यक्तित्व में दर्द ” से पीड़ित था | दिल के दर्द की दवा सचमुच होती है | इस उपचार का एक तत्व है शारीरिक श्रम | दुखी आदमी को खाली बैठकर चिंता करने के मोह से बचना चाहिए | बेकार के चिंतन की जगह शारीरिक श्रम करने के समझदारी भरे तरीके से मस्तिष्क के उस क्षेत्र पर तनाव कम होता है जहा हम सोचते है ,चिंतन करते है और मानसिक दर्द अनुभव करते है | मांसपेशिया गतिविधी मस्तिष्क के दुसरे हिस्से का उपयोग करती है और इसलिए इससे तनाव की दिशा बदल जाती है और व्यक्ति को राहत मिलती है |
एक देहाती वकील जिसकी फिलासंफी दमदार थी और जिसमे बहुत समझदारी थी उसने एक दुखी महिला को यह सलाह दी थी की टूटे हुये दिल की सबसे अच्छी दवा यह है की झाड़ू हाथ में लेकर घुटनो के बल बैठ जाए और काम में जुट जाये | पुरुष के लिये सबसे अच्छी दवा यह है की वह अपने हाथ में कुल्हाड़ी लेकर तब तक लकडिया काटे जब तक की वह थकान से चूर ना हो जाये |
हालाकि यह दिल के दर्द के पूर्ण और शर्तिया उपचार की गारंटी तो नही है , परन्तु इससे दर्द कम जरुर होता है |