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बईमानी की बासुंदी से अच्छी है ईमानदारी की लुखी रोटी

एक व्यक्ति ने मेरे पास आकर कहाँ की उसके मित्र के पिता जी बल्लेकमार्केटर है ।उनके पास बहुत पैसा है। समाज मे उनका नाम है।रहने को अलिशान मकान है।तो धुमने को चार कार है।समाज मे इज्जत है।हमारे पास ऐसा सुख क्यो नही है?

मेरे पास न मान है न सम्मान है।न समाज मे स्थान है।बस देने को थोड़ा सा ज्ञान है।

मेरे पास उनके जैसा सुख क्यो नही है।मेने उसे रामायण का उदाहरण देते हुए समझाया- सीता जी के पति भगवान थे तो भी उन्हे जंगल मे सोना पड़ा। हर रोज कष्टो को सहना पड़ा। कैद मे रहना पड़ा। जबकि मंदोदरी का पति राक्षस था। तो भी सोने की नगरी मे रत्न महल मे सोती थी। हर सुविधा का साधन उसके पास था पर उसका पति खराब था जिससे उसकी कोई किमत नही थी। आज कोई भी उसे याद नही करता है। सीता जी का नाम इज्जत से लेते है।रावण का पुतला जलाने मे आता है तो राम की घर- घर पुजा होती है ।सीता को माता माना जाता है। जीवन मे साधन शुद्धि का महत्व है ।सोने की लंगड़ी अगर पीतल मे भी पड़ी हो तो उसकी किमत कम नही होती है । अगर जाजम पर भी कचरा पड़ा है तो भी उसे साफ किया जाता है पर अनीति से कमाया धन सुविधा देता है शान्ति नही दे सकता है ।घर का ए.सी. रूम को ठंडा कर सकता है पर मन की आग बुझाने का सामर्थ्य उसमे नही है। हिंसा से तो दाउद से लगाकर गली के गुड़े तक के काम हो जाते है। परन्तु प्रतिष्ठा तो सरदार पटेल के मार्ग पर चलने से ही मिलती है।

तात्पर्य बस इतना है कि –

बेईमानी की बासुदी से इज्जत की लुखी रोटी अच्छी है।
आदमी साधनो से नही साधना से महान होता है।
आदमी भवनो से नही भावना से महान होता है।
आदमी उच्चारण से नही उच्च आचरण से महान होता है।

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