सुख यानि जिसे कोई व्याखाया मे बांधा नही जा सकता है। जिसे चुआ भी नही जा सकता है। जिसे कुछ सुनाया भी नही जा सकता है। जिसे आवाज देकर बुलाया भी नही जा सकता है। जिसे स्पर्श भी नही किया जा सकता है। जिसे अंगुली पकड कर घर मे बिठाया भी नही जा सकता है। जो प्यारा लगता है पर उसे चूम्मा भी नही दे सकते है। जो हमारा खुद का होता है। हमारे साथ मे ही खडा होता है तो भी हम उसे बाहो मे जकड नही सकते है। जिसका outgoing free है परंतु Incoming पैसे देने के बाद भी चालु नही हो सकता है। जिसे दुसरो के पास से उधार नही ले सकते है। जिसे दुसरो के पास से लूट भी नही सकते है। पर यह दुसरो को खोबा भर के दे सकते है।
सुख वह वस्तु है जिसे ना ही खरीद सकते है ना ही बेच सकते है परन्तु इसे बाँट सकते है।
सुख बडा ही चंचल है। इसे संभाल कर या पकड कर नही रखा जा सकता है। परंतु दुनिया के हर मानव का प्रयत्न इसे पकड कर रखने का है- जकड कर रखने का है। पर याद रखना सुख कोई मरा हुआ पंछी नही है कि वह तुम्हारी मुठ्ठी मे आ जायेगा। ज्यादातर लोगो के लिए संसार मे धारा होती है तो सुख होता है। परंतु उन लोगो को पता नही है कि सुख हमेशा अंधेरे मार्ग से आता है और वैसी अंधेरे मार्ग से वापिस चला जाता है।
हमारी दुनिया मे एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जिसके लिए सुख तो वस्तु है। कितने ही लोग उपयोगी वस्तु मे सुख देखते है। कपडे, आभुषण, गाड़ी, बंगला, मोटर जो कोई भी वस्तु हो बस उसे इक्ट्ठा करना। इनके हिसाब से बस वस्तुओ मे ही सुख होता है। इसके अलावा उन्हे कुछ भी नही दिखाई देता है।
पर सुख कोई thing नही nothing है। जो अगर सुख मात्र वस्तुओ मे होता है तो शहर के माँल मे सुख के स्टोक उभरते थे। पर ऐसा नही है।
“हर कर्म हमेशा सुख नही देता है। पर कर्म करे बिना कभी सुख मिलता भी नही है।”