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चालाकी के रंगीन रेपर मे पैक हुए निर्णय कभी भी उदार नही हो सकते है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन उदारता के समुद्र जैसा था। उनकी नसो मे खुन के बदले उदारता ज्यादा बहती थी। उनके हर निर्णय मे उदारता नज़र आती थी। वह हमेशा एकता को लेकर चलते थे। जात- पात, धर्म- अधर्म के कमरे से दूर होकर मानव के कल्याण की बात करते थे। समग्र मानव के हित मे निर्णय करते थे। उनका एक ही सिद्धांत था- मजहब की हर बात से पहले देश का दर्जा ऊचा है। और वह इसी पर हमेशा चलते थे। हिन्दू, मुस्लिम, ब्रह्मण सबके लिए एक जैसे थे। समग्र समाज के लिए बाते उन्होंने करी है, समाज मे उदारता का सिंचन किया है।

व्यवहारी लोगो को उनकी उदारता मूर्खता जैसी लगती थी। परन्तु यह मुर्खता नही थी। क्योंकि चालाकी के रंगीन रेपर मे पैक हुए निर्णय कभी भी उदार नही होते है।

उदारता से हमेशा अच्छा हो यह जरूरी नही। कभी भुल भी हो सकती है। पर इसका आशय हमेशा शुभ ही होता है। यह सभी के हितकारी ही बनते है। इससे नुकसान नही होता है और आज इसी की सबसे ज्यादा आवश्यकता है। वरना आयोजन के साथ किये गये निर्णय तो कभी भी उदार नही हो सकते है। हर आयोजन मे सबसे पहले आयोजक का स्वार्थ देखा जाता है। जहाँ स्वार्थ आता है वहा उदारता तो हो ही नही सकती है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल को लोह पुरुष बनाने वाली यह उदारता है। इसी उदारता से वह महान बने। उदारता हर मानव को महात्मा बना सकती है। जो आपको महात्मा बनना हो तो उदारता बना सकती है।

है किसी की तैयारी?

कोई इन्सान प्रशंसा के योग्य है और अगर हम उसकी प्रशंसा नही करते है तो यह एक प्रकार की अनुदारता है। किसी का काम बधाई देने जैसा हो और अगर हम इर्ष्या के कारण बधाई नही दे पाते है। तो यह भी अनुदारता है। उदार मानव का दिल साफ करती है।

“उदारता वह नाव है जो
जीवन नैया को पार लगा देती है।”

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