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चमत्कार यानि क्या?

चमत्कार की एकदम सिधी और सरल फिलॉसफी है- चमत्कार होते नही है, चमत्कारो को करना पड़ता है। यह शक्ति हर मानव मे रही है। पर यह बात बहुत कम लोग समझते है कि उनमे भी चमत्कार करने की शक्ति है। बहुत से लोगो को तो इस शक्ति के बारे मे अता पता भी नही होता है।

“हाँ, मै यह कर सकता हूँ” ,

यह मै कर सकता हूँ, इस वाक्य को सब कोन्सिथन्स माईन्ड मे फीट कर देना चाहिए? मुझे यह करना ह। मुझे सफल होना है। मुझे सिद्धीयो को प्राप्त करना है। इस तरह के संकल्प सतत् मन को देते रहना चाहिए। फिर आपको आपके प्रयत्नो के प्रत्ये वफादार रहना चाहिए। अगर यह सब हम करते है तो सफलता हमे पक्का मिलेगी। और उस समय हमे यह सफलता एक चमत्कार की तरह लगेगी।

चमत्कार दुसरे कुछ भी नही है खुद के साथ और स्वयं के प्रयत्नो के साथ वफादारी यह चमत्कार है। किसी भी सफल व्यक्ति से अगर पुछो की आपको क्या यह पता था कि आप सफलता प्राप्त कर सकते है तो वह निखालस होगा तो उसका यही जवाब होगा- मुझे नही पता था। पर मुझे सफल होने की तीव्र इच्छा थी और मेने प्रयत्नो को शुरू रखा। और परिणाम कुदरत पर छोड दिया। बस मेने तो निष्ठापूर्वक और वफादारी के साथ प्रयत्नो को किया और चमत्कार उत्पन्न हो गया। जीवन मे कभी भी वह सफल नही होता जिससे शंका होती है।

सफलता कभी भी निर्धारित नही होती है। और इसी कारण जब यह मिलती है तो चमत्कार जैसी लगती है। 20- 20 वल्र्ड कप मे युवराज सिंह ने 6 बाल पर 6 छक्के लगाए थे। और उनसे इस चमत्कार के बारे मे पुछा तो उसने बताया की मेने तो कभी भी प्रेक्टीस मे भी यह कारनामा करने का नही सोचा था। मै तो खेल सुधारने का प्रयत्न करता रहा। और आज यह चमत्कार का सर्जन हो गया।

जब इन्सान अपना 100% परफार्मेंस देने की कोशिश करते तो चमत्कार का सर्जन होता है। और सफलता आपके कदमो मे आकर बैठ जाती है। बस आप दिल से प्रयत्न करते हो तो कुदरत भी आपके साथ खड़ी होती है और आपकी पुरी मदद करती है।

इन्सान को बस एक धुन लगनी चाहिए और क्रेर्जी हो कर के अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए। सफलता को भी आपके सार्थक होने के लिए मजबूर होना पडेगा। दुनिया मे जितने भी चमत्कार हुए है वह इन्सान ने ही करे है।

“श्रद्धा ही ले गई मुझे मेरी मंजिल के ऊपर
रास्ते भूल गया तो दिशाए बदल गई”

याद रखना सद्भाग्य हमेशा परिश्रम के साथ या तो उसके पिछे ही होता है ।।

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