एक मूवी का दृश्य हम सब को आकर्षित कर देती है। उस कलाकार के अभिनय पर हम सब दिवाने हो जाते है। अभिनेता का भी अभिनय ऐसा होता है कि दर्शको को उसमे महामानव की छवि नजर आती है।
आज हमे उसी एक छवि के बारे मे बात करना है। जिस छवि मे हिन्दूस्तान को गर्व होता है जो विश्व मे बताती है कि एक समय मे हिन्दूस्तान मे कितनी संवेदना थी। जो दुसरो की खुशी के लिए अपने जीवन तक को न्योछावर करने को तैयार हो जाते है ।
इस देश का एक अभिनेता एक मासूम बच्ची को छोड़ने के लिए जो देश हमे दुश्मन की तरह देखता है उस देश मे जाकर उस लडकी को उसके घर तक पहुंचाता है। दुश्मन को भी संकट मे साथ देना यही ही इस देश की महामानवता है।
परंतु आज 21वी सदी मे हमारी मनवता, संवेदना, करूणता सारे के सारे आर्य संस्कृति के गुण सिर्फ मूवी के दृश्य बनकर रह गए है?
आज हमारी वास्तविक जिंदगी मे कितनी संवेदना है। हम किसी दुश्मन देश की मदद करने के लिए देश के स्तर पर तैयार हो जाते है। पर क्या खुद की जिंदगी को जोखिम मे डालकर हम हमारे आस- पास वालो की भी मदद करते है?
हम कभी निस्वार्थता के साथ घर के सदस्यो के साथ कितना रहते है? हमे मात्र मूवी मे गुणो को नही देखना है। इनसे कई ज्यादा गुण हमारे पूर्वजो ने हमे विरासत मे दिये है।
आर्य संस्कृति के हर पेज पर ऐसे महामनव के नाम अंकित है जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा, समाज कल्याण, जन उत्थान के लिए अपने प्रणो तक को न्योछावर करने को तैयार हो गए ।
इस देश की मिट्टी के हर कण मे बजरंगी बसे हुए है। जिनका सिंचन मात्र और मात्र मानवता के लिए हुआ है। जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज उत्थान मे लगा दिया। अरे हमे तो वीर चंद राघवजी और स्वामी विवेकानंद जी जैसे महापुरुष मिले है। जिनका जीवन मात्र और मात्र दुसरो की सेवा मे लगाया है।
बस तो हमे भी इनके जीवन से कुछ सीखकर इस 21वी सदी मे वास्तविक का बजरंगी बनकर अपने जीवन को सार्थक करना है।