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आत्मारूपी पत्थर को शिल्पकृति दे दो तारणहार प्रभु

मेरे विशुद्ध आत्मा को तैयार करना है।…
पर, प्रकिया अटक गई है…
डीस्प्युट हो गया है और मेरे बीच मे
तेरा रोल कितना और मेरा रोल कितना है?
सबसे पहले work को बाटना है।
जब तक सही कार्य विभाग नही होंगे तब तक तु मेरी गलती निकालेगा कि
मै साधना करता नही हूँ।
और मै,
तेरी गलती निकालुगा कि
तु थोडी सी भी कृपा बरसाता नही है।
आज, कार्य के विभाग का निर्णय कर लेते है।
अरे दुनिया मे जितनी भी शिल्पकला है
उन सभी मे शिल्प जिसमे बनना है उसे तो
निष्क्रिय ही उसमे रहना है।
जो कुछ भी करना है शिल्पकारको करना है।
मिट्टी का पिंड पडा है।
कुम्हार घडता है तो
घट शिल्प तैयार हो जाता है।
कागज पडा है।
चित्रकार चित्रकाम करता है तो
चित्राकृति प्रगट हो जाती है।
लकडा पडा है
सुथार सुथारी काम करता है तो
कष्ट शिल्प तैयार हो जाता है।
लोहदण्ड पडा है
लोहार लुहारी काम करता है तो
लोह शिल्प तैयार हो जाता है।
पाषन पडा है।
शिल्पकार टाकणी मारता है तो
मनोहर पाषन शिल्प तैयार हो जाता है।
सोने के बिस्कुट को कुछ करना नही है।
जो भी करना है वह स्वर्णकार करता है।
जो स्वर्ण आभूषण आकार पा जाते है।
अब तेरी और मेरी कार्य सीमा नक्की करते है।
मुझे बनना है। तुझे बनाना है ।
मुझे निष्क्रिय रहना है।
तुझे भी सक्रिय हो कर कृपा बरसाना है
तो ही यह आत्मा शिल्प छडायेगा।
अब कार्य भार आपके सिर पर।
मै तो पाषन हूँ। क्या कर सकता हूँ ।।

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