गीदड़ ने गड्ढे की ओर देखा-था तो कुछ गहरा था, पर मूर्ख जो ठहरा।
परिणाम पर विचार किए बिना कूद गया,
पानी तो जैसे तैसे पिया कीचड़ में फँस गया।
ऊपर निकलना कठिन हो गया ऊँचाई इतनी थी कि
वह कूदकर ऊपर नहीं आ सकता था। तभी उधर से एक बकरी निकली। बकरी को देखते ही गीदड़ ने उसे पास बुलाकर कहा
अरी बहन! तू कितनी प्यासी है, देख कितना शीतल जल है, आ यहाँ उतर आ, तू पानी भी पी लेगी, तेरे सहारे मैं भी ऊपर आ जाऊँगा और फिर मैं ऊपर से तुझेभी चढ़ा लूँगा।
बकरी को उसकी बातों में स्वार्थ की गंध आ रही थी,
पर दयालुतावश वह उसमें उतर गई।
गीदड़ की तैयार था ही, बकरी की पीठ पर बैठा और उछलकर बाहर आ गया। बकरी ने कहा भी भाई अब मुझे भी तो निकालो पर गीदड़ ने हँसकर कहा-बहन तुम्हारे जैसे मूर्ख दुनियाँ में हों तो हमारे जैसों की चालाकी कैसे चले यह कहकर गीदड़ वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो गया।