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कही ये रिश्ता टूट तो नहीं रहा

संवेदना एक एहसास है जब किसी का दुःख किसी की पीड़ा
किसी हृदय को महसूस होती है, तब वहीं ये संवेदना जन्म लेती है।

जब किसी का रूदन किसी का करुण क्रन्दन
किसी मन को द्रवित कर जाता है तब वहां संवेदना का जन्म होता है
संवेदना जन्म लेती है उन आंखो में जिसकी पलके किसी के अश्रुओं से बरबस ही भीग जाती है
ये ना किसी सरहदों में सिमटी होती है ना मुल्कों में बटी होती है,
धर्म-सम्प्रदाय-जात-भाषा-वर्ण सब बंधनों से परे एक रिश्ता है मानव से मानव का।

पर आज इस एहसास से परे मानव बुत सा बन कर क्यों खड़ा है
क्या उसके हृदय की कोमल ज़मीं पाषाण हो चुकी है?
क्यों किसी का दुःख किसी की पीड़ा उसे महसूस नहीं होती,
क्यों आज किसी के रूदन किसी के करुण क्रन्दन से.
उसका मन द्रवित नहीं होता है।
क्यों आज किसी के अश्रुओ से उसकी पलके भीगती नहीं है?
क्यों सिमट गए है उसके ये एहसास एक संकुचित दायरे में
क्यों संवेदनाये शून्य हो चली है रों-रों कर मन में एक प्रश्न उभरता है
कि! ये जो मानव से मानव मात्र का रिश्ता है, कही ये रिश्ता टूट तो नहीं रहा।

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