Archivers

जीवन की आवक

जीवन में जिस पल और जिस समय का सदुपयोग नही होता है तो वो ख़राब हो जाता है। हमने जितना भी समय ख़राब बातो में बिगाड़ा है तो जीवन का अंश भी उतना बरबाद होगा। जो सही तरह से योग्य तरह से जीता है वो सच्चा जीवन जीता है बाकी के जीवन और मरण में कोई दुरी नही है मात्र स्वास का आना- जाना ये जीवन का लक्षण नही है उस से कुछ विषेश होना अनिवार्य है।

दो मित्र लम्बे समय के बाद मिले। एक श्रीमंत हो गया दूसरा एक दम गरीब।

श्री मंत मित्र ने पूछा तेरी आवक कैसी है। गरीब मित्र ने जवाब दिया अंदर की अच्छी और बहार की सामान्य। श्रीमंत मित्र ने पूछा की मतलब क्या है ? आवक मतलब आवक। इसमें अंदर की कैसी और बहार की कैसी !

गरीब मित्र ने कहा सुनो! शरीर को टिकाने और जीवन को धरती पर चलाने के लिए जो साधना सामग्री व्यवस्था चाहिए ये सभी मिलने के बाद जो काम में आती है वो आवक बहार की आवक कहलाती है।

गरीब मित्र बोला जो मन को शांति दे अंतर को संतृप्त करे आत्मा का उत्थान करे और समग्र जीवन संतृप्त करे उसे अंदर की आवक कहते है। और तू सुना कैसा क्या चल रहा है। तेरे जीवन की आवक कैसी चल रही है?

श्री मंत मित्र थोड़ी धीमी आवाज़ में बोला मेरे बहार के आवक का कोई पार ही नही है। पर अंदर की आवक शून्य है।

गरीब मित्र बोला ये तो गलत है तू अंदर की आवक को बड़ा। दुनिया की आशाओ और उपलब्धिओ से जीवन को माँप नही सकते है। पीछे क्या रखा है उसके ऊपर से सही हिसाब निकलता नही है। आज कौन सी दिशा में चल रहे हो उसके उपर से आने वाले कल के जीवन का अंत नक्की होगा की अपने क्या प्राप्त किया

श्री मंत मित्र बोला तू मुझे बता की अंदर की आवक किस तरह से बढ़ाए जा सके!

गरीब मित्र ने कहा अंदर की आवक का आधार सेवा संतोष और साधना पर रहा हुआ है। सभी की सेवा करो जैसा मिले उसमे संतोष रहो और चित्त को प्रभु साधना में मग्न रखो तो अंदर की अंतर समृद होगी और जीवन कल्याण के मार्ग की ओर अग्रसर होगा।

उदारता का जितना बैंक राशि ज्यादा उतनी हमारी क्रेडीट ज्यादा
March 29, 2016
गुरू की दृष्टि से जीवन मे प्रगति
April 1, 2016

Comments are closed.

Archivers