एक नौका समुद्र मे दुर देश जा रही थी। उस नाव मे अनेक यात्री सवार थे। उस यात्रीयो के समूह मे विविध प्रकार के स्वभाव वाले यात्री थे। कोई अमीर था तो कोई गरीब, कोई मध्यम वर्गी था तो कोई सेठ नौकर कार्यकर्ता सभी तरह के यात्री उसमे थे। उसमे एक फकीर बाबा भी थे। जो हमेशा खुद की मस्ती मे रहते थे और प्रभु भक्ति मे लीन रहते थे।
नाव मे कितने अहंकारी धमाली शरारती लोग भी थे जो हमेशा फकीर बाबा की हंसी उडाते थे, छेड़खानी करते थे, मजाक करते थे। पर हमेशा फकीर बाबा तो शान्त अपनी फकीरी मे मस्त रहते थे। उन लोगो की ओर से दी गई तकलीफ मे भी उनके चहरे पर मुस्कान रहती थी। कोई शिकायत नही।
एक रात को फकीर बाबा प्रभु भक्ति मे लीन थे। उनकी आँखे आकाश की ओर थी। वह कुछ बोल कर पर्वाधिकार से बात कर रहे थे। उस धमाली शरारती टीम के पास अच्छा अवसर मिला। वह फकीर बाबा के पास गए और अपशब्द बोलने लगे। बहुत कुछ बुरा कहा। उनको हेरान किया। पर बाबा प्रार्थना मे से बाहर नही आये तो उन्होंने फकीर बाबा के मस्तक पर मारना शुरू कर दिया। पर बाबा प्रार्थना मे से डगे नही। वह तो बस अपनी स्थिर मुद्रा मे खडे रहे।
फकीर के माथे पर पडते मार के बाद भी उनकी प्रार्थना रूकी नही। प्रर्थनामय बंध आँखो मे से प्रभु प्रेम के आसु टपक रहे थे। अरे भक्ति मे मस्त बाबा के आसु धरती पर गिरते ही आकाश वाणी हुई।
भक्त तो कहे तो नाव को क्षणभर मे उल्टी कर देता हू। यह चमत्कारी अद्श्य आवाज को सुनकर तुफानी शरारती वर्ग डर गए। वह तो सिधे बाबा के चरणो मे गिर कर गिड़गिड़ा ने लगा- बाबा हमारी गलतीयो को माफ करो। पर बाबा तो अभी प्रभु भक्ति मे मस्त थे। उन्होंने प्रार्थना पुरी होने पर आँख खोली और कहा तुम डरो मर।
आकाश की ओर देखकर बोले- मेरे दयावान प्रभु ! आप शैतान की भाषा क्या बोल रहे हो? अगर आपको कुछ देना है तो इनकी बुद्धि को बदल दो। नाव उलटी करने से क्या होगा?
फकीर की बात सुनकर फिर से आकाश वाणी हुई- मै आज खुब खुश हूँ। तुमने बहुत अच्छी बात करी है। शैतान की भाषा को जो पहचानता है वही मुझे और मेरी भाषा को समझ सकता है। तेरे ह्रदय मे मात्र मेरी भक्ति ही है। यह तुने प्रमाण दे दिया है कि तु सबका भला ही चाहता है। तेरी सच्ची फकीरी से खुश हो कर इन सब को सद् बुद्धि देता हूँ।