पाटन के राजा सिद्धराज जय सिंह की माता श्री मीनले देवी एक बार सोमनाथ महादेव की यात्रा करने के लिए गए। वहाँ पर उन्होंने खुले हाथ से खुब दान करा। पर दान करते करते उनके मन मे एक विचार आया- अरे मेरे दान जैसा दान सम्पूर्ण जगत मे कौन कर सकता है? जहा पर उस जमाने मे लाखो की नही करोडो की बात होती थी।
लोगो के मान को खत्म करने वाले महादेव को लगा की महारानी को कुछ तो सिखाना पडेगा। दान हमारी आत्मा को अन्नदीत करे वह तो अच्छी बात है। पर अभिमान से मलिन करे यह तो कभी भी नही चल सकता है।
यह तो महारानी खुले हाथ दिल खोल कर दान देते थक गये और थकान के कारन उन्हे दिन मे भी निंद आने लगी।औरवह सोने लगी तब भी उनके मन मे दान के विचार चल रहे थे।
महारानी को स्वप्न मे भोले नाथ के दर्शन हुए और उन्होंने हसते हसते उनसे पुछा की
महादेव! आप क्या मेरे दान से संतुष्ट है?
महादेव ने माथा हिला कर मना कर दिया।
मेरे बही खातो मे मिनल देवी एक और व्यक्ति जिसका कद तेरे दान से ऊच्चा है।
मिनल देवी बोले एसी क्या कमी रह गई मेरे दान मे जिससे उसका कद मेरे से बडा है? वह ऐसा कैसा दानेश्वरी है जिससे मेरे से भी बडा दानवीर बन गया?
महादेव ने उत्तर दिया कि बात कुछ इस तरह है कि आपके और हमारे यहा के हिसाब किताब की पध्दति मे बडा अंतर है। तुम जिस माप से मापते हो वह माप हमारे यहा नही चलता है।आपके यहा के तरिके महारानी हमारे बिल्कुल भी नही चलते है। अगर तुम्हे सही मे दानेश्वरी के दर्शन करना हो तो मंदिर के ओटले पर जो बुढी औरत फटे हाल मे बैठी है उससे जा कर के पुछो की उसने कितना दान दिया है? महारानी उठते ही मंदिर की ओर जाती है। और उस वृद्ध से पूछा कि तुने कितना दान दिया है? और वृद्ध ने कहाँ महारानी जी मेरी क्या हेसियत है कि मै दान दे सकू। अरे मै तो 100 km दूर से पैदल चलकर आयी हूँ और कल 11 का उपवास था। और सुबह एक सज्जन ने आटा दिया तो बस उसे ले कर उस मे से आधा दुसरो को दे दिया। रोटी बनाई और आधी कुत्ते को खिलाई और बस फिर मेने आहर ग्रहण करा। दुसरे से लिया दान ही मेने दुसरे को दिया। बाकी मेरी कहा ताकत की मै किसी को दान दे सकू। अरे दान तो आप जैसे दानवीर भामाशाह दे सकते है। गरिब तो बस इसी तरह से कर के खुश हो जाता है कि मेने कुछ दान किया।
इस वार्तालाप ने मिनल देवी की आँखे खोल दी की वास्तव मे सही दान तो यही है।