बेटी v/s बहू
बेटी ससुराल में खुश होती है, तो
खुशी होती है और
बहू ससुराल में खुश है, तो
खराब लगता है ।
दामाद बेटी की मदद करे, तो
अच्छा लगता है और
बेटा बहू की मदद करे तो
जोरू का गुलाम कह लाता हैं ।
बेटी जींस पहने तो खुश होते है
कि मोर्डन फेमिली है और
बहू जींस पहने तो
उसे बेशर्म कहते है ।
बेटी को ससुराल में
अकेले काम करना पड़े तो
खराब लगता है कि
मेरी बेटी थक जायेगी, और
बहू सारा दिन अकेले काम करे,
फिर भी बहू काम-चोर कहलाये ।
बेटी की सास और ननद
काम ना करे तो
गुस्सा आता है, और
जब अपने घर में वो
बहू की मदद ना करे तो वो
सही लगता है ।
बेटी की ससुराल वाले ताना मारे तो
गुस्सा आता है, और
खुद बहू के मायके वालों को
ताना मारे तो सही लगता है ।
बेटी को रानी बनाकर रखने वाली
ससुराल चाहिए और
खुद को बहू कामवाली चाहिए ।
लोग यह क्यूं भूल जाते है कि
बहू भी किसी की बेटी है ।
वो भी तो अपने माता-पिता
भाई-बहन, शहर-सहेली आदि को
छोड़कर आपके साथ नये जीवन की
शरुआत करने आई है ।