माँ
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई,
बीवी के आगे माँ रद्द हो गई ।
बड़ी मेहनत से जिसने पाला,
आज वो मोहताज हो गई ।
और कल की छोकरी,
तेरी सरताज हो गई ।
बीवी हमदर्द और माँ सरदर्द हो गई,
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई ।
पेट पर सुलाने वाली,
पैरों में सो रही ।
बीवी के लिए लिम्का,
माँ पानी को रो रही ।
सुनता नहीं कोई, वो आवाज देते सो गई,
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई ।
माँ मॉजती बर्तन,
वो सजती संवरती है ।
अभी निपटी ना बुढ़िया तू ,
उस पर बरसती है ।
अरे दुनिया को आई मौत,
तेरी कहाँ गुम हो गई ।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई ।
अरे जिसकी कोख में पला,
अब उसकी छाया बुरी लगती ।
बैठ होण्डा पे महबूबा,
कन्धे पर हाथ जो रखती ।
वो यादें अतीत की,
वो मोहब्बतें माँ की, सब रद्द हो गई ।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई ।
बेबस हुई माँ अब,
दिए टुकड़ो पर पलती है ।
अतीत को याद कर,
तेरा प्यार पाने को मचलती है ।
अरे मुसीबत जिसने उठाई,
वो खुद मुसीबत हो गई ।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई ।
माँ तो जन्नत का फूल है,
प्यार करना उसका उसूल है ।
दुनिया की मोह्ब्बत फिजूल है,
माँ की हर दुआ कबूल है ।
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है,
माँ के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है ।