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Story Of The Day 13th, February 2016

पर निन्दा नहीं, स्व-निन्दा करो

हे अबोध, निन्दा-रसिक बनो, तो वह रसिकता स्वयं की आत्मा के प्रति ही धारण करो । स्वयं में जो-जो दोष हों, उन-उन दोषों की अहर्निश निन्दा करो और उन दोषों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील बनो ।

इस जगत में आत्म-निन्दा में मस्त रहने वाली आत्माओं की संख्या बहुत ही कम है, जबकि परनिन्दा के रसिक तो इस जगत में भरे हुए हैं ।

दूसरों के दोषों को देखकर उनके प्रति विशेष दयालु बनना चाहिए । उनको उन दोषों से मुक्त करने के शक्य प्रयत्न करने चाहिए । कब वह दोष से मुक्त बने और कब वह अपने अकल्याण से बचे, यह भावना होनी चाहिए ।

इस वृत्ति, इस भावना के साथ परनिन्दा रसिकता का तनिक भी मेल है क्या ? नहीं है ।

लेकिन, स्वयं में अविद्यमान गुणों को स्वयं के मुख से गाने की जितनी तत्परता है, उतनी ही दूसरों के अविद्यमान दोषों को गाने की तत्परता है और इसीलिए ही संख्याबद्ध आत्माएं हित के बदले अहित साध रही हैं ।
अपना हित साधना है तो,
पर-निन्दा नहीं, स्व-निन्दा करो ।

Story Of The Day 12th, February 2016
February 12, 2016
Story Of The Day 13th, February 2016
February 13, 2016

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