जब आप जिनालय-उपाश्रय में आए तब आप के वस्त्र शालीन होने चाहिए, आपको वस्त्रों की मर्यादा का पालन करना चाहिए। जैसे जिनालय में वस्त्रों की मर्यादा का पालन करना चाहिए वैसे ही उपाश्रय में आए तब भी आपको वस्त्रों की मर्यादा का पालन करना चाहिए। यह तो विरागियों का धाम है। यह विरागियो की वीतरागी बनने की साधना होती है, उनकी साधना में खलल न पड़े, इसका आपको बराबर ख्याल रखना चाहिए। किंतु आप ऐसे वस्त्रों में बन-ठन कर आते हैं कि आपको अपनी मर्यादाओं का भी ध्यान नहीं रहता है। समझदार को इशारा में ही कहा जाता है। ज्यादा कहने में मजा नहीं है।
मेरे परमतारक गुरुदेव से एक 70 से 75 वर्ष की उम्र के वयोवृद्ध पुण्यात्मा मिले। उन्होंने परमतारक गुरुदेव के पास आकर कहा, ‘महाराज साहब! मुझे लगता है कि मेरी आंखें फूट गई होती तो अच्छा होता।’
तब परमतारक गुरुदेव ने पूछा, ‘ऐसा क्यों कहते हो?’ पुण्यात्मा ने कहा ‘महाराज साहब! मेरी पुत्री भी विवाह के बाद ससुराल से घर आती है तो जिस मर्यादा से पेश आती है, वह मर्यादा पालन हमारी बहुएं भी नहीं करती। हमारे आगे-पीछे चाहे जैसे घूमती है, उनके वस्त्रों में भी अब कोई मर्यादा नहीं रह गई है। हम जन्म से मर्यादा में रहे हैं, इसीलिए यह सब देखा नहीं जाता। इसलिए ऐसा लगता है कि यह सब देखने का समय आया, उससे पहले ही आंखें चली गई होती तो अच्छा होता।’ यह एक मर्यादा प्रेमी पिता की वेदना थी। किंतु आज आप लोग तो उदार मतवाले सहन-शीलता की मूर्ति है, समानता के पक्षधर है; इसीलिए घर में पुत्र-पुत्रियां अथवा बहुएं चाहे जैसे घूमते हो, उसमें आपको कुछ भी विचित्र नहीं लगता। 40 वर्ष की पुत्रवधू के साथ 70 वर्ष का ससुर भी डांडिया लेकर नाचता है और कहता है कि, ‘साहब! पुत्रवधू भी तो पुत्री समान होती ही है न?’ भूतकाल में तो पुत्रवधू ससुर के साथ बात भी नहीं करती थी और आज पुत्रवधू तथा ससुर डांडिया हाथों में लेकर साथ में नाचते हैं। इसमें दोनों को तथा परिवार के अन्य लोगों को भी कुछ विचित्र नहीं लगता। इस प्रकार अब तेजी से सभी मर्यादाएं विलुप्त होती जा रही है।
भूतकाल में आपके अकेले के जीवन में जो उचित व्यवहार नहीं रहता था, तो आप की अकेले की अपकीर्ति होती थी और इसी अपकीर्ति के भय से अनुचित कार्यों से बचा जा सकता था। किंतु आज तो सब एक जैसे हो गए हैं, इसीलिए अपकीर्ति जैसा कुछ रहा ही नहीं है। कौन किससे कहें? और यदि कोई किसी से कहने जाए तो उस पर चिल्ला उठते हैं, कोई किसी के सामने एक अंगुली उठाता है तो उसके सामने 4 अंगुलियां उठती है। इस प्रकार आजकल सदाचार व दुराचार के बीच की भेदरेखा मिटती जा रही है। किसी को पता ही नहीं है कि सदाचार किसे कहते हैं और दुराचार किसे कहते हैं?