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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 3

वह युग था परमार्थ का; छोटे-छोटे निमित्तों को पाकर अथवा जिनवाणी का अमृत पान करने वाले नव युवा की भौतिक सुखों को तिलांजलि देकर चारित्र धर्म को स्वीकार करने के लिए कटिबद्ध हो जाते थे। सुनंदा सुखपूर्वक अपना गर्भ वहन करने लगी। गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार की पीड़ा न पहूँचे . . . उसका वह पूरा -पूरा ध्यान रखने…

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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 2

धन गिरी के दिल में नारी देह का कुछ भी आकर्षण नहीं था। उसका मन तो मुक्ति- वधू को पाने के लिए लालयित बना हुआ था। जिस संयम की साधना से मुक्ति-वधू का संगम हो सके, उसे पाने के लिए वह अत्यंत ही आतुर था। दीक्षा की प्रबल भावना होने पर भी पारिवारिक दबाव के आगे धनगिरी को झुकना पड़ा…

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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 1

अवंति देश! तुम्बवन नगर! उस नगर में धन श्रेष्ठी रहता था। वह अत्यंत ही न्याय प्रिय और पापभीरू था। उस धन श्रेष्ठी के धनगीरी नाम का इकलौता बेटा था।पूर्व भव की आराधना और सुसंस्कारों के फलस्वरुप बाल्यकाल से ही धनगिरी के मन में संसार के प्रति विरक्ति का भाव था। योवन में काम-उन्माद की अधिक संभावना रहती है। बिहावने जंगलों…

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