Archivers
प्रभावक सूरिजी – भाग 8
कवियों की यह बात सुनकर महाराजा ने तत्काल भोगवती वेश्या को आदेश दिया कि तू इन कवियों की प्रशंसा कर। भोगवती ने कहा, राजन! मैं तो पादलिप्त आचार्य की ही स्तुति करती हूं, उनके सिवाय इस दुनिया में स्तुति पात्र और कौन है? उनको छोड़कर इस दुनिया में अन्य गुणवान पुरुष कौन है? वैश्या की यह बात सुनकर शंकर नाम…
प्रभावक सूरिजी – भाग 7
नागार्जुन जंगल में जा पहुंचा। उसने उन ओषधियों की शोध की। शोध के परिणाम स्वरुप उसे वे ओषधियाँ मिल ही गई। उसने उन ओषधियों का मिश्रण कर पादलेप तैयार किया। उस लेप को तैयार कर उसने अपने पैरों में लगाया, जिसके फलस्वरुप वह कुछ उड़ा, किंतु एक औषधि की न्यूनता के कारण वह तुरंत नीचे गिर पड़ा, जिससे उसके घुटनो…
प्रभावक सूरिजी – भाग 6
निः स्पृहि सूरी ने पात्रसहित वह सुवर्णरस कचरे में फिकवा दिया। क्या जैनाचार्य धन से खरीदे जा सकते हैं ? कदापि नहीं. सुवर्णरस की ऐसी उपेक्षा देखकर उस सेवक को बड़ा अफसोस हुआ। आचार्य श्री ने कहा अरे! तू व्यर्थ चिंता क्यों करता है , तुझे पात्र और भोजन हो जाएगा। आचार्य श्री की सूचना से उसे श्रावक के घर…
प्रभावक सूरिजी – भाग 5
राजा ने राजकुमार और नूतन मुनि के जाने के बाद दो गुप्तचरों को यह जानने के लिए नियुक्त किया कि राजकुमार और मुनि कहां कहां जाते हैं। महल से निकलने के बाद राजकुमार ने सोचा, यह सभी जानते हैं कि गंगा पूर्व की ओर बहती है, राजा भी जानता है और प्रजा भी, फिर व्यर्थ ही गंगा तट पर जाने…
प्रभावक सूरिजी – भाग 4
श्रंगार गर्भित वर्णन सुनकर गुरुदेव बोले- “पलित्तओ! तू राग की अग्नि प्रदीप्त हो गया है। नागेंद्र ने कहा, “गुरुदेव! कृपा करो, एक मात्रा और बढ़ा दो। ताकि ‘पलित्तओ, के बदले ‘पालित्तओ’ हो जाऊ। पालित्तओ अर्थात पादलेप विद्या वाला। इस विद्यापूर्वक पैर पर लेप करने से व्यक्ति इच्छा अनुसार आकाश में गमन कर सकता है। शिष्य की प्रतिभा से गुरुदेव अत्यंत…