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अग्निशर्मा का अनशन – भाग 6

तपोवन निरन्तर बहती हुई सरयू के किनारे पर बसा हुआ था। तापस लोग नदी के प्रवाह में रोजाना स्नान करने जाते थे। कूछ तापस स्नान करके तपोवन में आ रहे थे। उन्होंने आमवृक्षों के कतारो की साये में चलते हुए अग्निशर्मा को उसके आसान पर बैठा हुआ पाया! वे चौक उठे। उन्होंने बारीक निगाहो से अग्निशर्मा को देखा। इस महातपस्वी का पारणा आज भी हुआ नही लगता है ? वे धीरे-धीरे कदम रखते हुए अग्निशर्मा के पास गए। उन्होंने पूछा भगवंत, आपका शरीर अत्यंत दुर्बल नजर आ रहा है। शरीर पर विलेपन या पुष्पोचार दिखाई नही देता है, तो क्या आज भी आपका पारणा नही हुआ? अग्निशर्मा ने दो टूक जवाब दिया नही हुआ। तपस्वियों ने चिंतित स्वर में पूछा ‘भगवंत, पारणा क्यो नही हुआ? क्या आप अभी तक राजा गुणसेंन के महल पर गये ही नहीं है? अग्निशर्मा ने रुक्ष स्वर में कहा गया था।तब फिर पारणा क्यों नही हुआ? आठ दस तापस एक साथ पुछ बैठे। वे अग्निशर्मा के सामने जमीन पर बैठ गये। कुछ देर खामोश रह कर अग्निशर्मा ने कहा ‘ तुम सभी तापस शायद जानते नहीं हो, परन्तु इस राजा ने बचपन से ही मेरे बिना किसी अपराध के, मेरे साथ वैर की गांठ बाँध रखी है।बचपन और फिर तरुणावस्था में इसने मुझे कैसी कैसी पीड़ाएँ दी है उसका वर्णन यदि में करू तो यह राजा तुम्हें नरक के परमाधामी जैसा लगेगा। तुम इसका मुँह देखना भी पसंद नही करोगे। इसके घोर सत्रास से व्यथित होकर ही तो मै इस तपोवन में आया था। लाखो बरस बीत जाने के बाद, वापस यह राजा मुझे यहाँ पर मिल गया। उसका विनय उसकी सेवभक्ति और अच्छा व्यवहार देखकर मुझे लग रहा था।कि राजा, अब सचमुच ही सुधर गया है। उसने पहले मेरी की हुई कदर्थना का उसे पश्चाताप हुआ है।शइसके कारण तो पारणे के लिए उसकी विनति में स्वीकार करता रहा। परन्तु मैं पहचान नहीं पाया। अब मुझे उसकी सही पहचान हुई है। उसका विनय निरा दम्भ है। उसकी सेवा भक्ति कपट है। माया है।अभी भी उसके मन मैं मेरे लिये नफरत ही नफरत और तीव्र वैरभाव भरा पड़ा है। मेरा घोर उपहास करने के लिए ही यह मुझे निमंत्रण देता है।और फिर बहाने बना बना कर मुझे पारणा करवाता नही है। आज भी मेरे पारणे का दिन जानकर उसने नगर में अचानक महोत्सव आयोजित कर दिया है। मै महल के आंगन में गया। वहा हज़ारों लोग नाच रहे थे,गा रहे थे बाजे बजा रहे थे। पर किसी को मेरे सामने देखने तक की फुर्सत नहीं थी। किसी ने मेरा आदरसत्कार तो ठीक, बुलाया भी नही। तब जाकर मुझे अक्ल आई कि राजा सब जानबूझकर आज भी मेरा पारणा चुकाना चाहता है। मै तुरंत ही बाहर निकल गया औऱ यहाँ आ पहुंचा। बोलते बोलतें अग्निशर्मा हाँफने लगा था। एक व्रद्ध तापस ने मृदु शब्दों में कहा महात्मन तपस्वी जनो के प्रति अपार वात्सल्य रखने वाले राजा गुणसेन मे ऐसी बात संभवित तो नही लगती। फिर इस असार जीवलोक में जीव चित्र-विचित्र स्वभाव वाले होते है।

आगे अगली पोस्ट मे…

अग्निशर्मा का अनशन – भाग 5
April 10, 2018
अग्निशर्मा का अनशन – भाग 7
April 10, 2018

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