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प्रीत किये दुःख होय – भाग 6

चोपड़ खेल रही सुरसुन्दरी का दिल भारी भारी होने लगा। उसका मन किसी अव्यक्त पीड़ा से थरथराने लगा। पासे गलत गिरने लगे…. रानियो ने सुरसुन्दरी के सामने देखा तो वे चौक उठी : दीदी….,तुम्हारे चेहरे पर इतना दर्द क्यो जम रहा है ?’ ‘कुछ समझ मे नही आता है… मुझे बेचेनी है…. कुछ अच्छा नही लग रहा है !’ ‘तो…

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प्रीत किये दुःख होय – भाग 5

तू तेरे ही ह्रदय का विचार करेगा, रत्नजट्टी ! क्या उस बहन को उसका पति याद नही आता होगा ? तू क्यों भुल जाता है पिता मुनि की भविष्यवाणी को ! ‘तेरा पाप कर्म काफी खत्म हो चुका है…. सुरसुन्दरी, बेनातट नगर में तेरे पति से तेरा मिलना होगा ।’ और रत्नजट्टी की आँखे सजल हो उठी । मुझे बहन…

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प्रीत किये दुःख होय – भाग 4

एक दिन मध्याह्र के समय चारों रानियाँ सुरसुन्दरी के साथ चोप खेल रही थीं ।खेल काफी जम गया था । समय एवं परिस्थितियों के इस पार जाकर सब जैसे चोपड़ के पासो में खो गए हो वैसा समा बंध गया था । अचानक रत्नजटी वहां जा पहुँचा । कमरे के दरवाजे पर ही वह खड़ा रह गया ठगा-ठगा सा !…

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प्रीत किये दुःख होय – भाग 3

रत्नजटी के मन में कभी कभी यह सवाल उभरता था कि ‘जिसके साथ मेरा कोई संबंध नहीं है… कोई परिचय नहीं है… कोई स्वार्थ भी नहीं है… क्यों फिर उसके प्रति दिल में स्नेह के शतशत दीप जल उठे है ? क्यों मैं उसे अपने महल में ले आया… क्यों मैंने उसे अपने महल में रखा ? क्यों उससे इतना…

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प्रीत किये दुःख होय – भाग 2

पुरुष का मन ही कुछ ऐसा विचित्र है । वह अपने वैषयिक सुखों की लालसा के लिये नये नये रंग-रूप खोजने में भटकता रहता रहता है । रत्नजटी उसमें बिल्कुल अपवाद था । फिर भी वह अपने मन में पूरी तरह जागृत था। वह समझता था कि कर्मपरवश जीव के विचार हर हमेश एक से स्थिर नहीं रह सकते ।…

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