दिन की कहानी
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जीवदयाप्रेमी
“श्रावकजी! गांव के बाहर बाड़े जैसी जगह में सैकड़ों सुवरो को बंदी कर के रखे हैं यह देख कर आया हूं । जांच करना है कि कसाई को बेचेंगे तो नही? “प.पू. पं. म. श्री पद्मविजय गणिवर्य ने जीवदयाप्रेमी बाबूभाई कटोसण वाले को प्रेरणा की । सुश्रावक ने यथाशक्ति करना स्वीकार किया। आगेवान श्रावकों के साथ बाबूभाई अधिकारियों से मिले।…
सिद्धगिरि से तोता मानव
यह सत्य घटना लगभग ८७ साल पहले बनी थी। समेतशिखरजी के लिए लड़ने वाले वकील के स्वरमुख से सुनी इस बात को पढ़ कर धर्म से संपूर्ण श्रद्धा पैदा करना। ग्यारह दिन का एक बालक खूब रो रहा था। बहुत उपाय करने पर भी शांत न हुआ तब परिवार वाले ‘क्यूँ न भये हम मोर’ यह स्तवन गाने लगे। तब…
आओ पहचानो गुरुभक्त को
श्री हस्तगिरिजी तीर्थ बनवाने वाले सुश्रावक कांतिभाई मणिभाई से अनेक जैन परिचित है। श्री हस्तगिरीजी तीर्थ के उद्धार में उन्होंने तन मन धन जीवन न्योछावर कर दिया है। यह श्रावक साहस से कैसी अनोखी सिद्धि पा सकते हैं इसका साक्षात दर्शन आज हस्तगिरि तीर्थ में होता है। एक छोटासा मंदिर भी किसी अकेले को बांधने में कितनी मुसीबतें उठानी पड़ती…
प्रवचन से ह्रदय-परिवर्तन
मुंबई भिवंडी में महात्मा प्रवचन दे रहे थे।वहां से जाते हुए एक श्रावक को व्याख्यान सुनने की इच्छा हुई। एक ही प्रवचन सुनकर अपने पापमय पूर्वजीवन के प्रति अत्यंत पश्चाताप हुआ। सात व्यसनो में गले तक डूबे उस श्रावक ने सातो व्यसनो का त्याग किया! प्रभुपूजा शुरू की। जिनवाणी सुनते भाववृद्धि हुई। ४लाख रु. खर्च कर अष्टप्रकारी पूजा की संपूर्ण…
श्रावकशिरोमणि दलीचंद्रभाई का विश्वविक्रम
गांव के युवको सहित सभी जैन उस श्राध्दरत्न को पा कर अत्यंत प्रसन्न है । अनेक साधु महाराज भी उस श्राद्धरत्न की धर्मचर्या जान बार-बार उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते। दलीचंदभाई की अनेकविध आराधना:- पिछले चालीस वर्षों से व्यापार का त्याग, जूतों का त्याग । पैतालीस वर्ष पहले उन्होंने बारह व्रत ग्रहण किए। नित्य रात को ग्यारह बजे…