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नई कला – नया अध्य्यन – भाग 4

माता रतिसुन्दरी राजा से कहती है- ‘ आप जो कहते है, वह बिल्कुल यथाथ है…. मुझे बहुत अच्छी लगी आपकी बातें। अपनी पुत्री का परलौकिक हित अपने को सोचना ही चाहिए। केवल वर्तमानकालीन जीवन के सुख के विचार नहीं किये जा सकते। आपकी बात सही है।’ ‘तुम्हें पसंद आयी मेरी बात…. पर सुन्दरी को भी तो जँचनी चाहिए….आखिर पढ़ना तो…

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नई कला – नया अध्य्यन – भाग 3

‘बेटी…..’ रानी ने सुन्दरी की ओर मुड़ते हुए कहा- ‘हम जो सोच रहे थे उसमें तेरे पिताजी की अनुमति सहज रूप से मिल गयी।’ रानी रतिसुन्दरी खुश होकर बोली। उसने राजा से कहा- ‘आप यहां पधारे, इससे पहले हम मां-बेटी यही बातें कर रही थी। सुन्दरी की इच्छा है धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने की, पर यह ज्ञान सुन्दरी पायेगी किससे?…

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नई कला – नया अध्य्यन – भाग 2

राजा रिपुमदर्न मंत्रणा खंड में से निकलकर रानी रतिसुन्दरी के पास आये । सुरसुन्दरी अपनी माँ के पास ही बैठी थी। मां-बेटी बातें कर रही थी। दोनों ने खड़े होकर राजा का विनय किया। रिपुमदर्न भद्रासन पर बैठा । रानी और राजकुमारी भी उचित स्थान पर बैठी। ‘ बेटी, तेरे कलाचार्य आये थे। अभी ही वे गये। उनके पास तेरा…

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नई कला – नया अध्य्यन – भाग 1

सुरसुन्दरी ने योवन की देहरी पर कदम रखे तब तक उसने तरह-तरह की कलाएं हासिल कर ली थी। उसके कलाचार्य ने आकर राजा रिपुमदन से निवेदन किया : ‘महाराज, राजकुमारी ने स्त्रयों की चौसठ कलाएं प्राप्त कर ली। मेरे पास जितना ज्ञान था , जितनी सुथ थी, मैंने सब सुरसुन्दरी को दे दिया है । मेरा कार्य अब समाप्त हुआ…

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