जिस तरह गिला वस्त्र हवा या धूप में रखने से अन्दर का पानी उड़ जाता है। उसी तरह महापुरुषों के पास रहने से कर्म रुपी पानी उड़ जाता है।
आकुलता करने से काम बनता नहीं है बल्कि आकुलता ही बढ़ती है,
अतः सदा निराकुल रहों। यदि आप खुश रहेंगे, तो आपके साथी
अपने आप खुश रहेंगे और दुखी तो दुखी। जिनरूप देखने का फल, चिद्रूप दिखना चाहिए।
यदि भविष्य मे कष्ट नहीं चाहिए, तो वर्तमान सुंदर बनाइये।
अवलोकन भी करना हो, तो जिनरूप का अवलोकन करो और पीना हो तो,
जिनवाणी का अमृत पीओ। नहीं चाहों तो सब मिलेगा,
चाहने से तो मिलता हुआ भी छिनेगा। श्रद्धा मे पर को अपना मानना,
त्रिकाली चोरी है। जो अपने मे संतुष्ट है, वो धनि है, और जो पर मे झांक रहे है, वे विपन्न है।
हमें पूरे को पूरा करना नहीं, मात्र पूरा जानना है और ये ही पुरुषार्थ है।
आत्म कल्याण के अलावा चाहे जो करों,
मात्र पछताना ही पड़ेगा।