गांव के युवको सहित सभी जैन उस श्राध्दरत्न को पा कर अत्यंत प्रसन्न है । अनेक साधु महाराज भी उस श्राद्धरत्न की धर्मचर्या जान बार-बार उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते। दलीचंदभाई की अनेकविध आराधना:- पिछले चालीस वर्षों से व्यापार का त्याग, जूतों का त्याग । पैतालीस वर्ष पहले उन्होंने बारह व्रत ग्रहण किए। नित्य रात को ग्यारह बजे से शुरू कर लगातार आठ सामायिक करते हैं!!!
इसके उपरांत पद्मासन मुद्रा में बैठ कर भगवान का ध्यान करते हैं। प्रतिदिन पंद्रह सामयिक करने का उनका नियम है! अब तक ये श्राध्दरत्न दो लाख से अधिक सामायिक कर चुके हैं!!! क्या आपने इतनी नवकार की मालाएं भी गिनी है? वे पर्यूषण में तथा प्रत्येक चतुर्दशी के दिन निश्चित रूप से पौषध करते हैं !! कुल २,००० से ज्यादा पोषक किए हैं!!!
उनके घर में ग्रहमंदिर तथा ज्ञानभंडार है! अब तक उन्होंने धर्मकार्य में लाख रुपए खर्च किए हैं। पिछले पचास वर्षों से वे मंदिर की देखभाल करते हैं। दस अठ्ठाइया, पच्चीस वर्षीतप , स्वस्तिक तप आदि मिला कर वे अब तक ६००० उपवास, हजारों आयंबिल तथा एकासने कर चुके हैं ! वे प्रतिदिन पूरी पचास नवकार की मालाएं गिनते हैं। उन्होंने पाँच करोड़ से भी अधिक नवकार गिन कर अपने नश्वर देह को पवित्र किया है । श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान तथा अन्य जिनेंद्र की माला,छ’री पालित संघ, १४ नियम धारना आदि विविध प्रकार की धर्माराधना करने वाले इस विशिष्ट आराधक को वहां के जैन संघ ने दिनांक ८ अक्टूबर, १४ के दिन श्रावकशिरोमणि के अलंकरण से अत्यंत हर्षोल्लास के साथ सम्मानित किए हैं!!!
दूरदर्शन, सिनेमा, होटल आदि पापों का संपूर्ण त्याग वे कर चुके हैं ।
शकल संघप्रिय यह सुश्रावक महापुण्य से किस तरह इस गांव को मिले हैं इसकी भी एक बहुत रोचक कथा है ।जन्म के समय न रोने, न हिलने डुलने की वजह से लोग उन्हें मृत समझ दफनाने जा रहे थे ।परंतु रास्ते में विधवा मौसी ने लोगों को रोककर, बच्चों को घर ला कर, रुई में लपेट कर ,गर्मी देने से वह बालक हीलने डुलने लगा। जन्म समय पर अत्यंत ठंड से ठंडे पड़ गए इस जीवित बालक को गांव के महापुण्य ने मौसी के जरिए जिन शासन को भेज दिया। देश विदेश के लाखों लोगों के लिए आदरणीय ८५ वर्षीय इस वयोवृद्ध धर्मसपूत को आप उनकी धर्माराधना की कहानी पढ़ते पढ़ते ही प्रणाम करें। हे धर्मप्रिय जैनों! आप सब भी अभी से यथाशक्ति ऐसी थोड़ी बहुत धर्माराधना करने का संकल्प कीजिए तथा श्रावकशिरोमणि दलीचंदभाई की धर्माराधना की सच्ची अनुमोदना कर पुण्योपार्जन के स्वामी बन जाए यही हार्दिक अभिलाषा।
यह और ऐसे ही अन्य कई प्रेरक प्रसंग पढ़कर आपने अपनी धर्माराधना कितनी बढ़ाई ? और ऐसे प्रेरक सत्य प्रसंग मुझे पुर्ण विगत, विस्तार से लिख भेजें।