महावीर तेरे शासन में हम शर्मिंदा है, शासन के गुन्हेगार है।
आप ने जैन शासन की स्थापना कर हम पर बहुत उपकार किया।
हमे वैर को अवैर से मिटाने का बोध दिया। विश्व मै जीव मात्र पर दया करना, संसार के सभी जीव (मानव,पशु,पक्षी,सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव) मात्र से मैत्री, जियो और जीने दो का सन्देश दिया।
अपरिग्रह का उपदेश दिया। रात्रि भोजन निषेध का उपदेश दिया। अहिंसा परमो धर्म का सन्देश और जीवदया का उपदेश भी दिया। आपने ही बताया जीव मात्र जीव ही होता है,
फिर भले हाथी का हो या फिर कीड़ी का हो, या फिर मानव का हो या चिड़िया का हो।
दर्शन- ज्ञान- चारित्र और तप- के माध्यम से जीव या आत्मा के मोक्ष का सिद्धांत बताया।
किन्तु इस पंचमकाल -कलयुग में हम इन उपदेश -सन्देश से भटक गए है।
भौतिकता और वासना-भोग विलास में रचे-पचे रहते है। रात्रि भोजन की बात छोड़ो बाहर और होटल में खाने लगे, भक्ष्य- अभक्ष्य का भी विवेक नही रखते। सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवदया की बातें खूब करते है। किन्तु अहं, पूर्वाग्रह और पैसो के व्यवहार में किसी भी प्राणी को कद प्रमाणे
वैतरणे या नापने में पीछे नही रहते।
परिग्रह में तो हम सात-सात पीढ़ी का सोचते है। आर्थिक रूप से कमजोर साधर्मिको की परिस्थिति विकट (आजकल कई साधर्मिको के उत्थान आत्मवल्लभ साधर्मिक केंद्र जैन अलर्ट ग्रुप आदि कई संस्थाएं काम कर रही है) है। महावीर आपने जिस जैन शासन की स्थापना की थी। उसे हमने मत मतांतर से जैनो के कई फिरके बना लिए। श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानक्वाशि, तेरापन्थ, तपागच्छ, खरतरगच्छ , तीन थुइ, दो तिथि, पायगच्छ, आदि-आदि।
यहा तक की जैन एकता नही होने के कारण हमारे अपने कई तीर्थ पर मालिकी हक़ का विवाद चल ही रहे है। कोर्ट कचहरी में दोनों पक्षों के हमारे जैनो के करोड़ो रूपये फालतू में खर्च हो रहे है।
श्रावको की तो क्या बात करनी? महावीर जन्म कल्याणक के दिन भगवान की पालखी या वरघोड़ा भी एक साथ नही निकालते।
सभी अपनी- अपनी डफली अपना-अपना सुर बजाते दीखते है।
यह हिंदुस्तान की कड़वी विडम्बना है की 100 करोड़ के हिन्दू मिलकर भी अपने आराध्य देव या श्रद्धावन्त देव श्री राम जी का मन्दिर उनके जन्म स्थल अयोध्या पर नही बाँध सकते है।
इसी प्रकार हम जैन 47 लाख लघुमति में होते हुए भी एक नही हो सकते या जैन एकता नही हो सकती सभी टांग खिंचाई में लिप्त है यह हमारे जैनो की करुणता है।
अब तो इन मुसीबतो में, भगवान आप के नाम का ही एक सहारा है।
अंत में यह कहना है की ये भगवान सभी जैनो को सदबुद्धी दे और धर्म के और टुकड़े न करते हुए धर्म के बिखरे फिरके को जोड़ने का कार्य करें, जैन एकता के लिए गतिशील हो।,