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एक कलाकार था (जीव)

एक कलाकार था (जीव) उसके घर पर बहुत मच्छर हो गये, (कर्म) उनसे परेशान होकर उसने मच्छरदानी (मतिज्ञान) लगानी शुरू की अब हुआ यूँ कि, भाई साहब की मच्छरदानी में एक छेद हो गया(निकाचित कर्म) अब उसमें से मच्छर अन्दर आते और काटते, सो तकलीफ जस की तस रही(कर्म फल) सिलाई करना (तत्व श्रद्धान) आता नहीं था, अब करे तो करे क्या?? (अज्ञान) आखिर उसके कलाकार दिल ने (स्व आत्म दर्शन) एक उपाय ढूंढ ही निकाला, उसने उस छेद के सामने एक और छेद कर दिया (निसर्गज सम्यग् दर्शन)
और एक छोटी पाइप लेकर आरपार रख दी, अब मच्छर एक छेद में से जाते दुसरे में से बाहर (निर्जरा) ये कहानी (संसारी जीवन ) तो यहाँ पूरी हो गयी।

लेकिन काश हम (जीव)भी अपने दिमाग (मित्थ्या ज्ञान) में एक ऐसी खिड़की रख सकें,
एक ऐसी आरपार वाली पाइप (सम्यग् ज्ञान)रख सकें….
हमें चुभने वाले, काटने वाले ( बंध) परेशान करने वाले विचारों को ऐसे
ही बायपास कर दे संवर) तो जीवन कितना सुन्दर हो (मोक्षशांति)

धर्म के सान्निध्य बिना ,नासमझ के लिये सिर्फ कहानी है और धर्म के सानिध्य से समझदार के लिये जीवन का सार कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड सकता , स्वयं को कर्ता धर्ता मानना अज्ञान है।

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