Archivers

पुण्य पाप की शुभाशुभता

Virtuous-sin

Virtuous-sin

नमस्कार पुण्य

जैन दर्शन नवतत्त्वमय है। इनमें से एक तत्त्व पुण्य तत्त्व है। इसका प्रभाव जानने-समझने जैसा है। मात्र पुण्योदय पर मोहित नहीं होना है और पापोदय मात्र तिरस्कार का पात्र नहीं है। पुण्य-पाप इन दोनों के अनुबंध की विचारणा करके उनकी शुभाशुभरूपता निश्चित कर सकते हैं। पुण्यानुबन्धी पुण्य आत्मा को पवित्र बनाता है, ऊपर चढ़ाता है और सुख की सामग्री जुटाता है। पापानुबंधी पुण्य आत्मा को मलिन बनाकर नीचे गिराता है और दु:ख देता है।

पुण्य का सर्जन परार्थ से होता है और पाप स्वार्थ में से उत्पन्न होता है। पुण्य और पाप इन दो तत्त्वों के ऊपर ही समस्त जगत की लीला है। मोक्ष की प्राप्ति और भव का भ्रमण भी पुण्य और पाप तत्त्व के ही आभारी है। मोक्ष का हेतु पुण्यानुबंधी पुण्य और संसार का हेतु पापानुबंधी पाप है। पुण्य और पाप दोनों तत्त्व परस्पर विरोधी तत्त्व होने पर भी दोनों की शक्ति में बड़ा ही अंतर है। पाप से भी पुण्य की शक्ति महान है। पाप को गिराने की और परस्पर के युद्ध में पाप को जड़मूल से नष्ट करने की ताकत पुण्य में है।

पुण्य प्रकाश है, से पाप अंधकार है। पुण्य अग्नि है, पाप ईंधन है। अंधकार से प्रकाश ओर ईंधन से अग्नि अधिक शक्तिशाली है। चाहे जितना भी गहरा अंधकार हो, सूर्य की एक ही तेज किरण से क्षण भर में खत्म हो जाता है। लकड़ी के ढेर को भी अल्पतम अग्नि के प्रभाव से थोड़े समय में ही जलाकर भस्म किया जा सकता है उसी प्रकार जन्म-जन्मांतर के संचित पापकर्म भी एक छोटे से पुण्य के प्रभाव से पल भर में नष्ट हो जाते हैं। पाप संख्या में या राशि में पुण्य से चाहे कितने बड़े प्रमाण में हो फिर भी पुण्य की अचिंत्य शक्ति के आगे से परास्त होना ही पड़ता है।

‘नमस्कार’ यह 9 पुण्य में से एक पुण्य है। वह नमस्कार जब भावपूर्वक बनता है, तब नमन योग इन परमेष्ठियों को किया हुआ एक भी नमस्कार नमस्कार-कारक को सभी पापकर्मों से मुक्त बनाकर ,यथाशीघ्र शिवपद प्राप्त करवा सकता है।

do-and-approve
करना-कराना और अनुमोदना
October 9, 2019
unbounded-law-of-karma
कर्म का अबाधित नियम
October 12, 2019

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers