धर्म तो आत्मा के भीतर ही होता है,
बाहर तो धर्म का उपचार होता है।
धर्मी के लिए जो किया जाये, वो धर्म है।
अजन्मे आत्मा का दृष्टि मे आना ही, जन्म दिन है।
कल्याण स्वभाव के आश्रय से होता है और
भवभ्रमण पर के आश्रय से।
चिढ़, कभी भी आंगें नहीं बढ़ने देती।
बड्डप्पन लघुता का नाम है, अहंकार का नहीं।
अहं का अधिकारी शुद्धात्मा है, अन्य कोई नहीं।
साधर्मी से अच्छा कोई साथी नहीं
और विधर्मी से बुरा कोई शत्रु नहीं।
जिनवाणी माता है और उसकी बात माने,
वो उसका लाल है, यह हम सब जाने।