पक्षपात
वह ससुराल में आ गयी । बहुत ही हठीली और वाचाल थी । वह सास के साथ उसका नित्य ही कलह होता रहता । बचपन से ही उसकी किसी न किसी से कलह करने की आदत थी । अतः पति पत्नी को रोज ही पीटा करता था । उसे लगता था कि अपना पति माता का ही पक्षधर होकर विनाकारण ही मुझे पीटता रहता है । इस विचार से वह सास के साथ और भी कलह करती । पति की मार खा-खाकर वह बहुत ही परेशान हो गयी थी । एक दिन ससूरजी किसी काम से अंदर आये और उन्होंने सास-बहू के कलह का दृश्य देखा । उन्होंने बहू को एकांत में समझाते हुए कहा कि, “बेटा, सास जैसा कहे वैसा किया करो । सास क्रोध करने लगे तो अपने मुँह से पानी की बोतल लगा लेना और सास का क्रोध समाप्त होने तक धीरे-धीरे, एक-एक घूँट पीते रहना । कलह अपने आप समाप्त हो जायेगा ।” बहू ने ससूर के कथन का यथावत् पालन किया । बहू से प्रत्युत्तर न मिलने के कारण सास अपने आप ठंडी हो गयी । दोनों में प्रेम के, स्नेह के संबंध निर्माण हुए । पति पक्षपात करता है इस शंका से वातावरण भड़क उठता था, किंतु ससूर अपने हित की बात करते हैं इस विश्वास से शांति स्थापित हो गयी ।
पक्षपात से कोई काम नहीं बनता । जब तक पक्षपात समाप्त नहीं होता, तब तक सर्वत्र विसंवाद ही होता है । प्रमाण, नय, निक्षेप आदि की अनुभूति के समय पक्षपात काम नहीं आता । जरा सा भी नयपक्ष आ गया तो विकल्प बढ़ जाते हैं, जैसे पानी पीते समय बोलने की क्रिया नहीं हो सकती; क्योंकि उससमय पानी के स्वाद की अनुभूति होती रहती है । उसी प्रकार भो आत्मन् ! अतींद्रिय आनंद का स्वाद करते समय इंद्रिय सुख का अनुभव नहीं हो पाता । अतः निरंतर ज्ञायकता की साधना करते रहो । अपने पास महान आत्मधन के होते हुए तुम बाह्य वैभव से फल-फूल नहीं सकते। अनुकूल घटित होनेपर फूल जाते हो और प्रतिकुलता में उदास बन जाते हैं। इस गलत संस्कार से तुम्हें बाहर पड़ना होगा ।
जितनी स्वानुभूति होती है, उतना ही तेरा जीवन है; बाकी सब मरण है । ऊपर चढ़ते समय सीढ़ी समझकर हवा में पैर रखा तो गिर पड़ते है, उसीतरह परद्रव्य हमारे ज्ञान के आधार नहीं हैं । यदि निराधार का आश्रय लेने जायें, तो वे हमें क्षणभर के लिए भी हमें आश्रय नहीं देंगे और हम पर में विराम नहीं करेंगे; इस बात पर पुरा विश्वास करो ।
हे जीव ! निज के अतिरिक्त और कहीं भी भगवान नहीं । स्वभाव में आराम करें तो विभाव का हराम समाप्त हो जाता है ।