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दिन की कहानी 18, जनवरी 2016

जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,
एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना ।

और….

जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,
किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना ।

जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,
एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना ।

और…

जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,
अपने माँ-बाप के पैर जरूर दबा देना ।

जीभ जन्म से होती है और मृत्यु तक रहती है क्योकि वो कोमल होती है ।

दाँत जन्म के बाद में आते है और मृत्यु से पहले चले जाते हैं…
क्योंकी वो कठोर होते है ।

छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर
बड़ी रहमत…।

बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार
देती है…।

किस्मत और पत्नी
भले ही परेशान करती है
लेकिन जब साथ देती हैं तो
ज़िन्दगी बदल देती हैं ।

“प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा ।

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी ।

साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा ।

किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं ।
मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती ।

एक साँस भी तब आती है,
जब एक साँस छोड़ी जाती है ।
नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है कि “चप्पल होती तो क अच्छा होता”

बाद मेँ…
“साइकिल होती तो कितना अच्छा होता”
उसके बाद में………
“मोपेड होता तो थकान नही लगती”
बाद में…
“मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो में
रास्ता कट जाता”

फिर ऐसा लगा की…
“कार होती तो धूप नही लगती”

फिर लगा कि,
“हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट
नही होता”

जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान
देखता है तो सोचता है,
कि “नंगे पाव घास में चलता तो दिल
को कितनी “तसल्ली” मिलती”… ।

जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ –
“ख्वाहिश” के मुताबिक नहीं

क्योंकि ‘जरुरत’
तो ‘फकीरों’ की भी ‘पूरी’ हो जाती है, और
‘ख्वाहिशें’ ‘बादशाहों’ की भी “अधूरी” रह जाती है ”…।

“जीत” किसके लिए, ‘हार’ किसके लिए
‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए…

जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन
फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए ।

ए बुरे वक़्त !
ज़रा “अदब” से पेश आ..!
“वक़्त” ही कितना लगता है “वक़्त” बदलने में ।

मिली थी ‘जिन्दगी’, किसी के
‘काम’ आने के लिए…
पर ‘वक्त’ बीत रहा है, “कागज” के “टुकड़े” “कमाने” के लिए…।

दिन की कहानी 18, जनवरी 2016
January 18, 2016
दिन की कहानी 19, जनवरी 2016
January 19, 2016

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