लालच और वैराग्य
भतृहरि जंगल में बैठे साधना में लीन थे अचानक उनका ध्यान भंग हुआ । आंख खुली तो देखा- जमीन पर पड़ा एक हीरा सूर्य की रोशनी को भी फीकी कर रहा है । एक समय था जब भतृहरि राजा थे । अनेक हीरे-मोती उनकी हथेलियों से होकर गुजरे थे ।
लेकिन ऎसा चमकदार हीरा, तो उन्होंने कभी नहीं देखा था एक पल के लिए उनके मन में इच्छा जागी इस हीरे को क्यों न उठा लूं लेकिन चेतना ने, भीतर की आत्मा ने वैसा करने से इनकार कर दिया । लालच की उठी तरंगें भतृहरि के मन को आंदोलित नहीं कर सकीं । तभी उन्होंने देखा- दो घुड़सवार घोड़ा दौड़ाते हुए चले आ रहे हैं ।
दोनों के हाथ में नंगी तलवार थी । दोनों ने हिरा देखा और उस पर अपना हक बताने लगे । जुबानी कोई फैसला न हो पाया, तो दोनों आपस में भिड़ गए । तलवारें चमकीं और एक क्षण बाद भतृहरि ने देखा- जमीन पर लहूलुहान पड़ी दो लाशें । हीरा अपनी जगह पड़ा, अब भी अपनी चमक बिखेर रहा था ।
लेकिन इतने समय में ही बहुत कुछ हो गया । एक के मन में लालच उठा, किंतु वह वैराग्य को पुष्ट कर गया और दो व्यक्ति कुछ क्षण पहले जीवित थे, एक निर्जीव पत्थर के लिए उन्होंने प्राण न्यौछावर कर दिए । धरती पर पड़ा हीरा नहीं जानता कि कोई उससे आकर्षित हो रहा है ।