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आज्ञापालन से मोक्ष

ज्ञान की प्राप्ति , ध्यान और शक्ति की अपेक्षा रखती है । आज्ञापालन बिना मोक्ष नही मिलता , यह श्रद्धा कहती है । आज्ञाकारक के ध्यान बिना आज्ञापालन नही यह भक्ति कहती है । आज्ञापालक का अनुराग और आज्ञाकारक का अनुग्रह ये दोनों मिलकर मोक्षमार्ग बनता है ।

आत्मा का शुद्ध स्वरूप वह मोक्ष है । उसकी प्राप्ति भक्ति और श्रद्धा दोनों की एक समय अपेक्षा रखती है । श्रद्धा साधन निष्ठ है । भक्ति में आराध्य की मुख्यता है । साध्य की श्रेष्ठता का ज्ञान श्रद्धा की व्रद्धि करता है । साधन पर श्रद्धा चाहिए और साध्य पर भक्ति चाहिए । साध्य पर रही हुई भक्ति ही साधन पर श्रद्धा का जनन करती है ।

साधन पर रही हुई श्रद्धा ही साध्य की सिद्धि प्राप्त करवाती है ।

मनुष्य का यत्न , श्रद्धा और आस्था ये एक ही वास्तु है । ईश्वरकृपा , भक्ति और नेक भाव ये भी एक ही वास्तु है । प्रयत्न फलदायक है , ऐसे विश्वास को ही नेक कहते है । यत्न यह शक्ति की एकनिष्ठता का सूचक शब्द है । भक्ति के प्रामाण में ही श्रद्धा का स्फुर्णहोता है और श्रद्धा के प्रामाण में ही भक्ति फलीभूत होती है ।

क्रिया का मूल श्रद्धा है , श्रद्धा का मूल भक्ति है , भक्ति का मूल भगवन के अचिन्त्य अनुपम सामर्थ्य का ज्ञान है और उसका मूल आत्मद्रव्य है । आत्मद्रव्य कि कीमत है इसीलिए उसकी पहचान करने वाले ऐसे परमात्म तत्व के प्रति भक्ति जाग्रत होती है ।

यह शक्ति क्रिया की और आदर प्रकट करती है और वह आदर प्रयत्न में परिणत होता है ।
प्रभु अनुग्रह से ही आत्मज्ञान , सत्क्रिया और सतश्रद्धा वगैरह उत्पन्न होते है , ऐसा निर्णय सम्यग्द्रष्टी जीव का होता है ।

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