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शुद्धि प्रदाता पुण्य

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गुणप्राप्ति का उपाय
कृतज्ञता, परोपकार आदी सद्गुणों की प्राप्ति गुणीजनों के बहुमान से होती है। गुणानुराग और गुण बहुमान से अपनी ह्रदय भूमि में गुण रूप बीज का वपन होता है। पूर्ण गुणी परमात्मा और परम गुणी सद्गुरु आदि गुणी पुरुषों का आदर, बहुमान, उनकी सेवा भक्ति तथा आज्ञापालन करने से अपने चित्त रत्न के ऊपर रही दुर्गुणों की मलिनता दूर होती है। उससे आत्मशुद्धि की प्रेरणा मिलती है और उसके द्वारा अनेक प्रकार की सद्भावनाए जागृत होती है।

गुण और गुणी के बहुमान पूर्वक सच्चे दिल से यदि गुणप्राप्ति हेतु परमात्मा के पास प्रार्थना करें, तो इस जीवन में भी सद्गुण अवश्य प्राप्त होंगे। इसीलिए चैत्यवंदन की विधि में जयवीयराय-प्रार्थना सूत्र द्वारा भक्त आत्मा, उत्तम गुणों की ओर मोक्षमार्ग की मंगल आराधना निर्विघ्न रूप से हो सके, उस प्रकार की उत्तम सामग्री की प्रभु के पास प्रार्थना करते हुए कहते हैं-

‘हे भगवान! आपकी कृपा के प्रभाव से मुझे भवनिर्वेद, मार्गानुसारिता, इष्टफल सिद्धि, लोक विरुद्ध कार्यों का त्याग, गुरुजन की पूजा, परार्थ करण और शुभ गुरु का योग तथा उनके वचन की सेवा आदि उत्तम गुणों की प्राप्ति हो।’

इस प्रार्थना में गुरु-जन-पूजा से कृतज्ञता और परार्थकरण से परोपकार गुण सूचित होता है। इस गुण की प्राप्ति भगवद भक्ति के प्रभाव से होती है और प्रभु प्रार्थना उसमें प्राण भरती है। जन्मदाता माता/पिता आदि लौकिक उपकारी जनों का आदर बहुमान और उनकी सेवा, आज्ञापालन आदि करने से शुभ गुरु का योग यानी लोकोत्तर उपकारी सद्गुरु आदी का शुभ समागम करावे वैसी तथा तद्वचन सेवना यानी उनके वचन अनुसार आचरण कर सके वैसी सद्बुद्धि और पुण्य शक्ति उत्पन्न होती है।

अन्न पुण्य, जल पुण्य आदि लौकिक परोपकार स्वरूप पुण्य कार्य करने से लोकोत्तर परोपकार कर सके वैसी अद्भुत पुण्यराशि का सर्जन होता है। कृतज्ञता और परोपकार गुण की प्राप्ति ही संसार में अत्यंत दुर्लभ है। उनकी प्राप्ति होने पर दूसरे गुण उनके प्रभाव से स्वयं प्रकट होते हैं।

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