यह सत्य घटना लगभग ८७ साल पहले बनी थी। समेतशिखरजी के लिए लड़ने वाले वकील के स्वरमुख से सुनी इस बात को पढ़ कर धर्म से संपूर्ण श्रद्धा पैदा करना। ग्यारह दिन का एक बालक खूब रो रहा था। बहुत उपाय करने पर भी शांत न हुआ तब परिवार वाले ‘क्यूँ न भये हम मोर’ यह स्तवन गाने लगे। तब रोना छोड़ कर बच्चा एकाग्रता से सुनने लगा। फिर जब भी वह रोने लगता तब यह स्तवन सुना कर शांत करते। शत्रुंजय की ताजी यात्रा की यादगिरी में उसका नाम ‘सिद्धराज’ रखा। इस तीन साल के बच्चे को उसकी सोनाचाची वालकेश्वर दर्शन करने ले गई। तब वह बोल उठा कि वे आदीश्वर दादा तो बड़े हैं । पूछने पर उसने कहा, “सिद्धाचल के आदेश्वर दादा की तो (पुर्व तोते के भव मैं)मैंने पूजा की है।” उसे कभी पालिताणा नहीं ले गए थे।
वह सिद्धगिरि के दर्शन की जिद करने लगा। तीन साल के उस बालक को पालिताणा ले गए। सोनगढ़ और शिहोर गांव से गिरिराज दिखा कर सिद्धराज चाचा को कहने लगा, ‘यही है सिद्धचलजी।’ पालीताणा पहुंचने पर यात्रा के लिए उसे डोली में बैठने को कहा। लेकिन वह चाचा की उंगली पकड़ कर चढ़ने लगा। बाई (औरत) उठा कर ले जाएगी ऐसा भी समझाया। लेकिन वह नहीं माना। बीच में कहीं भी न बेठा और सीधा ऊपर पहुंच गया! उसकी भावना जान कर पहली पक्षाल पूजा का चढ़ावा लेकर उसको प्रथम पूजा करवाई । घर के सब चैत्यवंदन करने बैठे, तब वह आधा घंटा प्रभु के ध्यान में बैठ गया। यात्रा के बाद बहुत ही खुश दिखाई देने लगा। उसने गिरिराज पर पानी तक नही पीया!! एक दो बजे नीचे उतर कर खाना खाया! उसका प्रिय स्थान सिद्धवड उसने सभी को दिखाया। पूछने पर उसने कहा कि यात्रा को आए हुए ये दादाजी और उनकी माताजी को देख कर मुझे उनके घर जाने की इच्छा हुई थी। चार साल के इस बालक को उसके कुटुंब महाराज साहब के पास ले गए। उसके साथ बातें करके पूज्य मुनि श्री कर्पुविजयजी महाराज साहब आदि ने कहा कि इसे जातिस्मरण ज्ञात हुआ है ऐसा लगता है। हजारों यात्री उसके दर्शन के लिए आते थे। यह बालक बड़ा होकर कोलकाता व्यापारी चेंबर में बड़े होंधे पर था।
पूर्वजन्म के ऐसे बहुत ही प्रसंग सुनने मिलते हैं।अनंत काल से पूर्व जन्म को बताने वाले ज्ञानी के सभी वचनों को जान कर-समझ कर आप भी धर्मसाधना करके मानवभव सफल करें।