अगर हम इन्द्रियों के दास बन गये, उसके पचड़े में पड़ गये तो उसका तो काम है कि,
वह हमें जकड़ लेगी। जैसे एक बन्दी के साथ पाँच सिपाही हों और एक राजा के साथ पाँच सिपाही हों, तो सिपाही तो दोनों के साथ हैं किन्तु दोनों में बहुत अन्तर है। एक जो बन्दी है,
उसको सिपाही जहाँ ले जाएंगे वहीं जाएगा परन्तु जो राजा है, वह अपने साथ वाले सिपाही को अपनी मर्जी से ले जाएगा। इसी प्रकार हमारी भी दो अवस्थाएं हैं, अब सोचना आपको है कि हम अपनी आत्मा को किस प्रकार बनाना चाहेंगे।
क्या हमारी यह आत्मा पाँच इन्द्रियरूपी सिपाहियों से जकड़ जाये या हम इन पाँच इन्द्रियों के राजा बनकर इन पर अपना हुक्म चलायें।
पाप किसी का बाप नहीं,
यह दुर्लभ मानव जन्म मिला है। इसका अच्छा उपयोग करना चाहिए,
अच्छा लाभ उठाना चाहिए। आदमी यह सोचे कि मरने के बाद दुर्गति में न जाना पड़े।
इसके लिए वह हिंसा, छल-कपट, झूठ आदि से बचने का प्रयास करे, यह काम्य है।
पाप किसी का बाप नहीं होता है।
जो पाप करता है, उसे उसका फल भोगना पड़ता है।
कर्मों के साम्राज्य में कोई लाडला नहीं है।
अति कषाय से आत्मा अधोगति को प्राप्त होती है, इसलिए आदमी को उससे बचने का प्रयास करना चाहिए और धर्माराधना के द्वारा इस दुर्लभ मानव जीवन का उपयोग करेl