“श्रावकजी! गांव के बाहर बाड़े जैसी जगह में सैकड़ों सुवरो को बंदी कर के रखे हैं यह देख कर आया हूं । जांच करना है कि कसाई को बेचेंगे तो नही? “प.पू. पं. म. श्री पद्मविजय गणिवर्य ने जीवदयाप्रेमी बाबूभाई कटोसण वाले को प्रेरणा की । सुश्रावक ने यथाशक्ति करना स्वीकार किया। आगेवान श्रावकों के साथ बाबूभाई अधिकारियों से मिले। न्यूनि. चीफ ऑफिसर ने कहा, सूवरो की तादाद खूब बढ़ने पर गांव वालों गांव वालो की बार बार फरियाद की वजह से म्यूनि. को आदमियों की मदद से सूवरो को पकड़वा कर निकाल करना पड़ेगा।”श्रावक ने कहा, सैकड़ो सुवरों कि कत्ल हम से कैसे सहन होगी? हम जैन हैं।” आप इन सूअरों को गांव से बहुत दूर छोड़ोगे तो मैं इन्हें आपको सौंप दूंगा।” ऑफिसर का ऐसा जवाब सोच कर श्रावको ने पैसे दे कर खुश कर करीब 1300 सुवरों को गांव से दूर छुड़वा दिए। यह धर्मप्रेमी बाबूभाई बाद में वैराग्य बढ़ने पर प.पू. प्रवर्तक जंबूविजय म.सा.के शिष्य मुनि श्री बाहुविजय बने।
सर्व जीवों के दु:खों को दूर करने का जीनोपदेश सुनकर गीताबहन जैसी सैकड़ो पुण्यात्माएं अपने प्राण दे कर भी लाखों जीवो को बचाती है। यह प्रसंग पढ़कर तो तुम भी थोड़ी हिम्मत दिखा कर ऐसे अबोल प्राणियों के अभयदान का अनंत लाभ लो यही शुभ कामना।